न हिन्दू न ही मुसलमान देखता है।
न ईमान न बेईमान देखता है।
छुआछूत ही है कोरोना की प्रकृति-
न भाषा न क्षेत्र इंसान देखता है।
कुछ लोग जाहिल औ' गँवार लगते हैं।
भरे हुए विषैले गुबार लगते हैं।
आज थक गया समझाकर सारा देश-
पर ये शठ सोच से लबार लगते हैं।
अहिंसा है धर्म पर सुरक्षा भी ज़रूरी है।
घूम रहे लोगों को डाँटना भी ज़रूरी है।
देखा देखी बहुत हुआ फ़ैसले की घड़ी है-
प्रशासन का अब सिंह गर्जना भी ज़रूरी है।
आओ एक दूसरे को जोड़ना सीखें।
चलो अब बैर बंधन को तोड़ना सीखें।
अपने हैं पर अपनों का दर्द रहता है-
हम गलत राह से उन्हें मोड़ना सीखें।
संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)