इश्क़ से गर यूँ डर गए होते - ग़ज़ल - अमित राज श्रीवास्तव "अर्श"

अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़ती : 2122 1212 22

इश्क़ से गर यूँ डर गए होते।
छोड़ कर यह शहर गए होते।।

मिल गए हमसफ़र से हम वरना,
आज तन्हा किधर गए होते।

होश है इश्क़ में ज़रूरी अब,
बेखुदी में तो मर गए होते।

यूँ कभी याद चाय की आती,
और हम तेरे घर गए होते।

वक़्त मिलता नहीं हमे अब तो,
"अर्श" थोड़ा ठहर गए होते।

अमित राज श्रीवास्तव "अर्श" - चन्दौली, सीतामढ़ी (बिहार)

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