संदेश
इससे बड़ा फ़क़ीर कहाँ है - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
किसी घुमक्कड़ योगी जैसा, आज यहाँ कल वहाँ ठिकाना। मात्र चीथड़े चिपके तन पर, यही सम्पदा यही ख़ज़ाना॥ रूखा सूखा जो मिल जाए, भूख मिटाने को…
जीवन की मुस्कान है बेटी - कविता - विजय कुमार सिन्हा
जीवन की मुस्कान पापा की पहचान ईश्वर द्वारा प्रदत्त वरदान कौन है वह? निश्चित तौर पर वह बेटी ही माँ के सो जाने पर जो कहती थपकी देकर…
कैसे कह दूँ किससे कह दूँ - गीत - नीलम काश्यप
कैसे कह दूँ किससे कह दूँ अपनी राम कहानी। सबके मन में पीर भरी है, आँखों-आँखों पानी॥ ऐसा कोई नहीं है आँचल जिसमें हवा लगी न हो, ऐसी कोई आ…
नज़रिया - कविता - संजय राजभर 'समित'
जीवन सरल कैसे हो एक पैमाना लिए सारी उम्र मुद्राएँ बटोरता रहा। हर एक क़दम के बाद वही समस्याएँ पर तन-मन में ताक़त थी लड़ता रहा, उम्र बढ़ा …
यही बुद्ध हैं - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
एक शब्द जो बड़ी क्रूरता से उछाला गया घृणा की आग पर तपाया गया उड़ाया गया उपहास तीखे वचनों से दूरदुराया गया "दुर हटो! दुर हटो!!"…
हम जाएँ कहीं महक साथ होगी - गीत - रमाकांत सोनी 'सुदर्शन'
हम जाएँ कहीं महक साथ होगी, वो कितनी हसीं मुलाक़ात होगी। चमन सा महकता ये मन मेरा, भावों में अद्भुत कोई बात होगी। कुंदन सा महके भावो का स…
गमले में बोई ग़ज़लें - कविता - रमाकान्त चौधरी
जाने कितनी घास उगी थी उन यतीम गमलों में जो रखे थे छत की मुंडेर पर। ख़र्च कर दी मैंने काफ़ी एनर्जी उन्हें साफ़ करने में। और फिर मैंने ब…
बुद्ध बनने की इच्छा - कविता - प्रशान्त 'अरहत'
सिद्धार्थ के पिता की तरह; मेरे पिता के पास कोई राजपाट नहीं था, न मुझमें बुद्ध बनने की कोई इच्छा। मैंने सिर्फ़ एक घर छोड़ा था घर में माता…
मञ्जरी - कविता - मृत्युञ्जय कुमार पाण्डेय
सज रहीं जो कोंपलें शृंगार करती तरुवरों की, उस कोंपल की ध्येय बनती मैं हूँ तरु की मञ्जरी। तरु जो विहग को वास देते, आस देते, उस तरु की च…
इगास पर्व उत्तराखंड - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
"भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू, उज्यालू आलो अंधेरो भगलू" इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए,भैलों खेलते, गोल-घेरे मे…
पहचान - कविता - विजय कुमार सिन्हा
माँ ने जन्म दिया बाबूजी ने मज़बूत हाथों का सहारा तब बनी मेरी पहली पहचान। गाँव से निकलकर शहर में आया चकाचौंध भरी रौशनी तो मिली पर ना मिल…
ड्यूटी - कहानी - डॉ॰ कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव
बड़ी सजकता से बोर्ड परीक्षा में कक्ष निरीक्षक की ड्यूटी कर रहा था। मैंने पहले ही मन मे ठान लिया था कि आज किसी हो हिलने का मौक़ा नहीं दूँ…
एक रात - कविता - इमरान खान
एक रात जब में प्रकृति का अनावरण कर रहा था। हरे पेड़, रंगहीन पत्थरों के बीच, चौंधियाती हुई रौशनी और घुप अँधेरे में, मैंने कल्पना की। नदी…
उत्तर प्रदेश की गाथा - कविता - अनूप अंबर
सबसे प्यारा-प्यारा यूपी, दुनियाँ में सबसे न्यारा यूपी। भारत देश के दामन पर, ह्रदय सा है हमारा यूपी॥ यहीं पर है वृंदावन पावन, यहीं पर त…
आसमाँ का समंदर - कविता - सुनील कुमार महला
कभी छत पर जाकर देखना आसमान का समंदर टिमटिमाते बुदबुदाते असंख्य तारों के बीच कभी तुम झाँकना मन प्रफुल्लित न हो जाए तो बताना राहत की साँ…
दिल तुम्हारे दिल में अपना इक ठिकाना ढूँढ़ता है - ग़ज़ल - सुशील कुमार
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन तक़ती : 2122 2122 2122 2122 दिल तुम्हारे दिल में अपना इक ठिकाना ढूँढ़ता है, हो मिलन ध…
सितारें - कविता - ऊर्मि शर्मा
हमेशा सोचती थी मैं आसमाँ के आँचल में सितारें ही सितारें, मेरे छोटे से आँचल में इक मुट्ठी सितारें हो। तभी इक रात ख़्वाब में चाँद समझा …
जीवन का अधूरापन - कविता - राकेश कुशवाहा राही
जीवन का अधूरापन भर न सका, स्वप्न का टूट जाना मैं सह न सका। ज़िन्दगानी दरिया के समानांतर है, इसीलिए जीवन भी रुक न सका। जग में कुछ सुन्दर…
उम्मीद - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
सफलता यदि छत है तो असफलताएँ उसकी सीढ़ियाँ खोकर तुमने जो पाया है देख उसे, आगे बढ़ेंगी आने वाली पीढ़ियाँ आसमाँ बड़ा है मुश्किलों का पहा…
एक अर्घ्य शौर्य को - कविता - गोकुल कोठारी
असंख्य सूर्य रश्मियों से प्रदीप्त ये धरा, तेजवान के लिए क्या तिमिर क्या जरा। सैकड़ों हों घटा या सैकड़ों हों ग्रहण, वो बिखेरे किरण कर र…
हे सूर्य देव! - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
हे सूर्य देव! हे ज्योतिपुंज! तमतोम मिटा दो जीवन का। ज्योतिर्मय राहें दिखला दो, दुःख क्लेश मिटा दो जीवन का। तुमसे ही है ये जग निरोग, त…
छठ पूजा - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन'
छठ की पूजा की सारी महिमा शास्त्र हमें बतलाते हैं, छठ देवी का अर्चन कर जन मनवांछित फल पाते हैं। वैदिक काल से चला आ रहा है यह मंगल पर्व,…
आस्था का महापर्व छठ - लेख - कुमुद शर्मा 'काशवी'
“पहिले पहिल हम कईनी, छठी मईया बरत तोहार। करिहा क्षमा छठी मईया, भूल-चूक ग़लती हमार।” “घरे घरे होता माई के बरतिया...” दीपावली बितते-बितते…
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