ऊर्मि शर्मा - मुंबई (महाराष्ट्र)
सितारें - कविता - ऊर्मि शर्मा
मंगलवार, नवंबर 01, 2022
हमेशा सोचती थी मैं
आसमाँ के आँचल में
सितारें ही सितारें,
मेरे छोटे से आँचल में
इक मुट्ठी सितारें हो।
तभी इक रात ख़्वाब में
चाँद समझा गया,
यह आसमाँ ही तो हैं
धरती का आँचल,
इसी में तुम,
इसी में मैं,
और
इसी में सब सितारें।
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