सितारें - कविता - ऊर्मि शर्मा

हमेशा सोचती थी मैं
आसमाँ के आँचल में
सितारें ही सितारें,
मेरे छोटे से आँचल में
इक मुट्ठी सितारें हो। 
तभी इक रात ख़्वाब में
चाँद समझा गया, 
यह आसमाँ ही तो हैं
धरती का आँचल, 
इसी में तुम, 
इसी में मैं, 
और
इसी में सब सितारें। 

ऊर्मि शर्मा - मुंबई (महाराष्ट्र)

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