यही बुद्ध हैं - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति

एक शब्द 
जो बड़ी क्रूरता से उछाला गया
घृणा की आग पर तपाया गया
उड़ाया गया उपहास
तीखे वचनों से दूरदुराया गया
"दुर हटो! दुर हटो!!"

और वह मौन मुस्कान में
करुणा के आदिम गान में
अहिंसा के शरण में
महानिर्माण के अवतरण में
ज्ञान चिंतन में मग्न हाथ
बढ़ता गया निर्भीक क़दम
प्रज्ञा का, बुद्ध का

विनय का बोध है
मानवता का शोध है
हाथ में पात्र है 
कुछ चंद मुठ्ठी दाने मात्र हैं
क्या ज़माने की घृणा
उसकी करुणा से बड़ा है
जो द्वारे पर भिक्षुक खड़ा है?

आँखों में दया का, करुणा का 
कल्याण का, दुनिया जहान का युद्ध है
पीड़ा प्रबुद्ध है, यही बुद्ध हैं।

सुरेंद्र प्रजापति - बलिया, गया (बिहार)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos