एक रात - कविता - इमरान खान

एक रात जब में प्रकृति का अनावरण कर रहा था।
हरे पेड़, रंगहीन पत्थरों के बीच,
चौंधियाती हुई रौशनी और घुप अँधेरे में,
मैंने कल्पना की।
नदी जो पहाड़ हो सकती है।
और पहाड़ नदी।

नदी और पहाड़ 
पानी और पत्थर से लड़-टकराकर मेरे सामने से गुज़र रही है।

जब मैंने उन पत्थरों को तराशा 
उस पर पानी की एक समानान्तर रेखा थी।
ये रेखा अतीत का हिस्सा थी।
अतीत जो वर्तमान हो सकता था।
उसपर अपनी प्रेयसी का नाम लिखकर 
मैं बादलों के बीच से गुज़रना चाहता था।

बादल जो प्रतिबिंब हो सकता था।
तेज़ संगीत और सीटियों के शोर में 
कहीं खो गया है,
जिसे अब मैंने कविता मान लिया है।

इमरान खान - नत्थू पूरा (दिल्ली)

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