आस्था का महापर्व छठ - लेख - कुमुद शर्मा 'काशवी'

“पहिले पहिल हम कईनी,
छठी मईया बरत तोहार।
करिहा क्षमा छठी मईया,
भूल-चूक ग़लती हमार।”

“घरे घरे होता माई के बरतिया...” दीपावली बितते-बितते इन लोकगीतों की मधुर धुन हमारे कानों में रस घोलने लगती है। इन गीतों के बोल को शायद हम स्पष्ट ना समझ पाते हो पर इनके भाव इतने निश्छल और माधुर्य से भरे होते हैं कि हमारा मन भक्तिमय हो विश्वास और श्रद्धा के आगे नतमस्तक हो जाता है, और हम इन गीतों को सुनते ही ख़ुद भी इनके साथ साथ गुनगुनाने को मजबूर हो जाते हैं। छठ महापर्व के गीत लोक परंपरा की गहराई का आभास कराते हैं। ये लोकगीत परंपराओं, मान्यताओं के साथ-साथ ख़ुद में ढेरों कथाएँ समेटे होते हैं। छठ महापर्व के दौरान जब हम इन गीतों को सुनते हैं या व्रतधारी महिलाओं को गाते हुए देखते-सुनते हैं या इन्हें आत्मसात करने की कोशिश करते हैं तो पाते हैं कि इन गीतों में मूल रूप से भक्ति की अंतःधारा बह रही है। हमारा मन भक्ति रस से सराबोर हो उठता है। एक अद्भुत अकल्पनीय शांति की अनुभूति होती है। इन गीतों में विरह और अनुराग दोनों ही भावों का समावेश है। इन पारंपरिक लोकगीतों को सुनते हुए एक ही भाव उभर कर सामने आते हैं वह है त्योहारों परंपराओं के प्रति हमारी आस्था, विश्वास और समर्पण।

हमारा भारतवर्ष त्योहारों का देश है। यहाँ का जनमानस हर त्यौहार परंपरा में उत्सव ढूँढ़ता है। यहाँ अलग-अलग जाति, वर्ण, समुदाय के लोगों द्वारा पर्व-त्योहार, धर्म संस्कृति और क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग तरह से मनाए जाते है। परंतु उदेश्य सिर्फ़ एक उल्लास, उमंग, उत्साह एवं सामाजिक सौहार्द। छठ महापर्व  बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखंड के क्षेत्रों में मनाए जाने की परंपरा रही है या ऐसा कहा जा सकता है कि यह मुख्यतः भोजपुरी भाषी लोगों द्वारा मनाया जाता रहा है, पर अब ऐसा नहीं है, आस्था का महापर्व छठ पूरे भारतवर्ष में मनाए जाने के साथ अब तो विश्व के कई भागों में भी मनाया जाने लगा है। छठ पर्व सूर्य की अराधना का पर्व है। छठ में मुख्य रूप से पारंपरिक और प्राकृतिक विधि विधान से सूर्य तथा उषा की पूजा की जाती है। भारत में यह पर्व सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध है, यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है इसलिए इसे षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इसमें सूर्य की उपासना उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए की जाती है। लोक आस्था का महापर्व छठ श्रद्धा और आस्था से जुड़ा है, ऐसी मान्यता है कि जो इस व्रत को पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ करता है उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है। यह व्रत संतान प्राप्ति, सुख समृद्धि एवं सुखमय जीवन की कामना हेतु किया जाता है।

लोक आस्था के महापर्व के साथ कई पौराणिक मान्यताएँ एवं किवंदती भी जुड़ी है इनमें से एक मार्कण्डेय पुराण के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ शक्ति के रूप में पूजा जाता है जो ब्रह्मा की मानस पुत्री है। जो बच्चों की रक्षा करती है। इन्हीं की पूजा से बच्चों को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने का आशीर्वाद मिलता है। शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं देवी की पूजा की जाती है जिसे छठी पूजन भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन शिशु का भाग्य लिखा जाता है। पुराणों में इनका नाम देवी कात्यायनी के रूप में वर्णित है। हिंदू त्योहारों रीति-रिवाजों को मनाने का हमेशा से ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण रहा है, ऐसे ही अन्य त्योहारों और अनुष्ठानों की तरह छठ पूजा का भी वैज्ञानिक महत्व है। सबसे बड़ी बात इस व्रत का पालन स्त्री-पुरुष समान रूप से परिवार के लोगों के साथ मिलकर करते हैं। इस पर्व में कोई बड़ा-छोटा, अमीर-ग़रीब नहीं होता... इसमें धार्मिक भेद-भाव, ऊँच-नीच, जात-पात को भूलाकर सभी एक साथ इसे मनाते हैं। घाट किनारे भगवान भास्कर को अर्घ्य देते हुए सब एक ही रंग में रंगे नज़र आते हैं वो है भक्ति और आस्था का रंग।

इस व्रत में व्रती सादगी पवित्रता साफ़-सफ़ाई शुद्धता का ख़ास ख़्याल रखते हैं। नहाए खाए में चावल, चने की दाल, लौकी (घिया) की सब्जी को प्रसाद के रूप में ग्रहण कर व्रत की शुरुआत होती है। इस व्रत में शुद्ध सात्विक भोजन बनता है जो मिट्टी के चूल्हे और मिट्टी के बर्तनों में ही बनाया जाता है। फ्लैटों में रहने वाले लोगों को जहाँ मिट्टी के चूल्हे की उपलब्धता नहीं होती वे इसके लिए अलग बर्तनों एवं चूल्हे का उपयोग करते हैं। नहाय-खाय के अगले दिन खरना होता है इसे लोहंडा भी कहते हैं। इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखकर शाम को चावल गन्ने के रस या गुड़ से बनी खीर, पूरी या रोटी का भगवान को भोग लगा प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं और इस प्रसाद को पूरे परिवार के लोगों में वितरित किया जाता है। इसमें नमक का प्रयोग नहीं होता। खरना के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है, इसी रात को गेहूँ के आटे, चीनी, गुड़ से बना प्रसाद बनाया जाता है जिसे ठेकुआ कहते हैं।

यही एक ऐसा पर्व है जहाँ डूबते और उगते दोनों सूर्य की उपासना की जाती है। आज पूरे भारतवर्ष के साथ हमारे शहर गुवाहाटी का दृश्य भी आनंदित करने वाला होगा, जहाँ आज दोपहर से ही आस्था और भक्ति में डूबे भक्त सिर पर बाँस की टोकरी, दउरा में प्रसाद, फल लिए नंगे पैर घाटों की ओर प्रस्थान करते नज़र आएँगे। इस आस्था के पर्व का इतना विराट एंव भव्य आयोजन होता है कि शहर के तमाम सड़कों, घाटों पर आस्था की भारी भीड़ नज़र आती है। शाम होते होते दीए की एंव अन्य रंग बिरंगी रोशनी से ब्रह्मपुत्र का दृश्य अतिमनोरम एंव अलौकिक होगा। व्रत धारी महिला पुरुष हाथों में सूप लिए जिसमें पाँच प्रकार के फल-गन्ना, नारियल, प्रसाद आदि के साथ कमर तक घंटों पानी में खड़े हो संध्या बेला होने के साथ भगवान सूर्य को अर्घ्य देंगे। आज पूरा शहर भक्ति और आस्था में डूबा नज़र आएगा। भक्ति और अध्यात्म से परिपूर्ण यह पर्व और इसके सुमधुर लोकगीत जीवन में भक्ति श्रद्धा एवं प्रेम का प्रसार करते हैं। यह व्रत कठिन तप के साथ किया जाता है। इस व्रत में नदी, पोखर, तालाब के किनारे पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने का विधान, परंपरा है। र्तिक शुक्ल सप्तमी की भोर में इसी तरह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा इसके बाद व्रत का पारण यानी समापन होगा। सोलह शृंगार किए नाक से माथे तक सिंदूर लिए सजी-धजी व्रत धारी महिलाएँ अथवा पुरुष किसी देवी-देवता के रूप से कम नहीं लगते। हम जो कोई भी इस व्रत को नहीं करते हैं वे भी इन व्रतधारियों के आगे झोली फैलाए, आँचल फैलाए खड़े रहते हैं कि एक प्रसाद का टुकड़ा हमें भी नसीब हो जाए और हमें भी इस व्रत का थोड़ा सा पुण्य प्राप्त हो जाए।

इस व्रत को करने की एक परपंरा यह भी है कि जब किसी की मन्नत पूरी हो जाती है तो वह अपने आस पडो़स के पाँच घरों से भिक्षा माँग कर इस व्रत को विधि विधान से पूरा करता है। पर आजकल कुछ अनैतिक कार्यों में लिप्त नास्तिक लोगों द्वारा इस प्रथा को पैसे कमाने का ज़रिया बना लिया गया है। आपको हर गली-चौराहे, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशनों पर इन दिनों अनैतिक कार्यो में लिप्त ऐसे लोग हाथों में सूप लिए पैसे माँगते हुए दिख ही जाएँगे, जो बेहद ही दुःखद है। हमें ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे लोगों द्वारा हमारी धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ न किया जाए। आस्था के महापर्व छठ की आप सभी को ढेरों शुभकामनाएँ। भगवान भास्कर एंव छठीमईया हम पर सदा अपना आशीर्वाद बनाए रखें।

कुमुद शर्मा 'काशवी' - गुवाहाटी (असम)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos