जीवन की मुस्कान है बेटी - कविता - विजय कुमार सिन्हा

जीवन की मुस्कान 
पापा की पहचान 
ईश्वर द्वारा प्रदत्त वरदान 
कौन है वह?
निश्चित तौर पर वह बेटी ही 
माँ के सो जाने पर जो कहती 
थपकी देकर सुलाओ न पापा 
खड़ा-खड़ा गोदी लेकर अब तो तुम घुमाओ न पापा। 
ऊदासी दूर करने की दवा है बेटी,
ठंडी हवा की तरह है बेटी। 
पापा के हँसते चेहरे के पीछे 
छिपे दुुख को समझे वह है बेटी। 
सृष्टि के नियमों का पालन कर 
एक नए घर में सृजन करने 
जाती है बेटी। 
अपवादों को छोड़ दो तो 
दो परीवारों के बीच के 
संबंधों की कड़ी है बेटी। 
संस्कारों में पली-बढ़ी
नए घर के अनुसार ढ़लती 
सबको अपना प्रिय बनाती  
इंद्रधनुष के रंगों की तरह 
छोटी बहन, बहु व माँ के रूप में निखरती।
पिता के सर का ताज 
एक ख़ूबसूरत एहसास 
ग़ुरूर और मान है बेटी 
जीवन की मुस्कान है बेटी।

विजय कुमार सिन्हा - पटना (बिहार)

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