नज़रिया - कविता - संजय राजभर 'समित'

जीवन सरल कैसे हो
एक पैमाना लिए
सारी उम्र
मुद्राएँ बटोरता रहा।

हर एक क़दम के बाद
वही समस्याएँ
पर तन-मन में ताक़त थी
लड़ता रहा,
उम्र बढ़ा
तजुर्बा बढ़ा
होश आया
यह चलता रहेगा
रे! मन
नज़रिया बदल
सुख चैन
हर पल है।

समय के साथ चल
वरना फिर यही समय
समय नहीं देगा
समय को क़ैद कर
समय के आग़ोश में नहीं
समय को आग़ोश में ले।

संजय राजभर 'समित' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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