संदेश
धनतेरस शुभकामना - कविता - श्याम सुन्दर अग्रवाल
धान्य-धन से देवी लक्ष्मी, देश का आँगन सजा दे, दीप का आलोक अपने गेह को स्वर्णिम बना दे, तम, निराशा, द्वेष, कटुता की ढहें दीवार काली, स्…
धनतेरस - मनहरण घनाक्षरी छंद - रमाकांत सोनी
धन की देवी लक्ष्मी, सुख समृद्धि भंडार। यश कीर्ति वैभव दे, महालक्ष्मी ध्याइए। नागर पान ले करें, धूप दीप से पूजन। दीप जला आरती हो, र…
तुम्हें लिखना चाहा - कविता - प्रवीन 'पथिक'
मैंने जितनी बार, तुम्हें लिखना चाहा। मेरी लेखनी के पाँव, धँस गए शब्दों के दलदल में। अन्यमनस्क; भ्रमित पथिक की भाँति, घूमता रहा कल्पना …
दो लफ़्ज़ प्रेम के - कविता - विशाल पटेल
दो लफ़्ज़ प्रेम के, कोई समझ न पाए। पत्थर को भी पिघला दे, प्रेम की ऐसी वाणी हैं। एक राँझा सा एक हीर सी, दोनों प्रेम की निशानी हैं। कोशिश …
सौ के नोट - कहानी - हर्ष वर्धन भट्ट
परकोटे से निकलकर चौदह वर्ष का उमा जैसे ही अपने बाप के डर से आम रास्ते पर आया, तो मस्ती में गुनगुनाता चलने लगा। कभी वह रास्ते पर पड़ी कं…
गुज़रते मेरे पड़ाव - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
धीरे-धीरे मैं भी तो, जीवन की पैड़ी पर चढ़ता चला गया। समय की उँगली पकड़, आश्रमों की दहलीज़ तक पहुँचता चला गया। धीरे-धीरे मैं भी तो, जीव…
डोर छोड़ी नहीं जाती है प्रेम की - कविता - अशोक कुमार कुशवाहा 'पाटल'
डोर छोड़ी नहीं जाती है प्रेम की, नाम जग में बड़ा है, प्रीत नाम की। दूर उनसे हमारी दशा है वही, व्याकुल रहे हृदय जैसे बिन प्रीत की। डोर छ…
आओ फिर से दिया जलाएँ - कविता - संजीव चंदेल
अंधकार का सीना चिरकर, तिमिर की छाती पर चढ़कर, झूम-झूम कर नाचे गाएँ, आओ फिर से दिया जलाएँ। ग़म की काली घटा छट जाए, ख़ुशीयों का सुरज उग आए…
धरती के देव - कविता - राजेंद्र कुमार
जो खेत जोतकर अन्न उपजाते, जन मानस का भरते पेट। वे इस धरती के कृषक महान, जो भीषण धूप में जोते खेत॥ सर्दी की ठिठुरन को सहकर, बारिश की…
मृत्यु शैया - कविता - सुनीता भट्ट पैन्यूली
मृत्यु शैया पर जब देह पुरज़ोर संघर्ष करती है विभीषिका से... पसलियाँ एकजूट हो जाती हैं श्वास की लय से लय मिलाने को विरोध करती है नासिका…
पुण्य का परिणाम है बेटी - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव
पिता की आत्मा माँ का अभिमान होती है बेटी, पूर्व जन्मों में किए पुण्य का परिणाम होती है बेटी। मेरे जीवन का वो सुनहरा दिन था, जब मेरे घर…
बँधुआ मज़दूर - कविता - संजय राजभर 'समित'
मर गया रामू जीवन भर क़र्ज़ा चुकाते-चुकाते पर चुका नहीं पाया। कभी आधा सेर मज़दूरी कभी डाँट पेट की आग में फिर उसका बेटा... बँधुआ फिर …
नाविक तू घबराता क्यों है? - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन'
उठती गिरती लहरें लखकर, नाविक तू घबराता क्यों है? ख़ुद या नाव पर नहीं भरोसा, तो सागर में जाता क्यों है? तरुणाई है जब तक तन में, यौवन भी …
असम्भव बूँद - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
सुख की कोमल छाया में जीवन की मोहक माया में कहाँ वह आनंद? जिसे, आत्म रचित छंद में गाया जाए! नवीन क्रीड़ा की पुनरावृतियों में सृजन के नव…
काश आज मेरी वो होती - कविता - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
दिल के दर्द प्यार से धोती। काश आज मेरी वो होती॥ 1. बात-बात में नखरे करती। दिल का चैन प्रेम से हरती॥ मिलता वक्त लगाते गोते। प्रेम प्यार…
मुरझाई तुलसी - रेखाचित्र - ईशांत त्रिपाठी
आज ऐसा मीतेश को क्या हुआ कि लगातार गीता-सार पचासों बार और बार-बार दोहराए ही जा रहा है? आवाज़ मीतेश की सुरीली तो है पर पाठ की आवृत्ति ब…
बेटी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
भारत की बेटी दुर्गा है, भारत की बेटी सीता है। रण चंडी बन वह युद्ध करे, गीता सी परम पुनीता है। लक्ष्मीबाई रजिया बन कर, बैरी को मात दिया…
मैं क्यों लिखता हूँ? - कविता - गोकुल कोठारी
या छंद हैं? या द्वन्द्व हैं? या भीतर का दावानल? या मिटाने तीव्र तपन को शब्द बने हैं गंगाजल? या साकार हूँ? या निर्विकार हूँ? या लीक से …
भारत का गौरव: डॉ॰ ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम - कविता - राघवेंद्र सिंह
एक राष्ट्र ऋषि, कर्तव्य निष्ठ, था दिनकर सा वह दीप्तिमान। धन्य हुई वह भारत धरणी, अद्भुत प्रतिभा थे कान्तिवान। था श्याम वर्ण और शांति दू…
बादल का शहर - कविता - इमरान खान
बादल का शहर कोई नया शहर नहीं है, वो तो उतना ही पुराना है, जितना बारिश की पहली बूँद। पहली बूँद प्रेम की बूँद होती है, वे उतनी ही गाढ़ी …
रास्ते मिलन के - कविता - अशोक कुमार कुशवाहा 'पाटल'
कैसे आओगे तुम मिलने के बहाने? कैसे कहोगे तुम इस दिल के तराने? तुम बन जाओ एक बाती, मैं बन जाऊँ एक दीपक। कोई तो जलाएगा हमको, प्रकाश करने…
ममतामयी माँ की आँचल - कविता - विपिन चौबे
मैं अपने छोटे मुख से कैसे करूँ तेरा गुणगान, माँ तेरी ममता की आगे फीका सा लगता भगवान। तूने ही तो हाथ पकड़ कर माँ चलना मुझे सिखाया है, व…
मोमबत्ती - कविता - इशिका चौधरी
जलती है एक मोमबत्ती जैसे उम्मीद की नई किरण जलती है, आशा के दरवाजे पर जैसे नई बगिया सी महकती है। जीवन रूपी समान लौं एक नया रास्ता दिखात…
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