भारत का गौरव: डॉ॰ ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम - कविता - राघवेंद्र सिंह

एक राष्ट्र ऋषि, कर्तव्य निष्ठ,
था दिनकर सा वह दीप्तिमान।
धन्य हुई वह भारत धरणी,
अद्भुत प्रतिभा थे कान्तिवान।

था श्याम वर्ण और शांति दूत,
इस निशा हेतु खद्योत बना।
व्यक्तित्व बना है अमरगान,
वह हिन्द देश की ज्योत बना।

निकला भारत से महादूत,
था विश्व पटल भी नतमस्तक।
उड़ने की चाह थी उड़ा वहीं,
व्योम के तल पर दी दस्तक।

था ज्ञान का वह ही एक उदधि,
वाणी में उनकी थी संसृति।
था संत पुरुष वह व्योम नक्षत्र,
बसती उनमें थी पूर्ण संस्कृति।

थे युवा जगत के चक्रपाणि,
भरते थे नव चेतन निःस्वार्थ।
दे गए दिशा विज्ञान का रथ,
बन चलना होगा हमें पार्थ।

मिसाइलमैन और एक शिक्षक,
भारत का गौरव भारत रत्न।
जो दिखा गए वो राह प्रबल,
पग रखना होगा कर प्रयत्न।

धन्य हुआ वह धनुषकोडी,
और धन्य हुई भारत भूमि।
था कलाविद वह सहज पुरुष,
थी भारत उसकी कर्मभूमि।

राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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