विशाल पटेल - समस्तीपुर (बिहार)
दो लफ़्ज़ प्रेम के - कविता - विशाल पटेल
शुक्रवार, अक्टूबर 21, 2022
दो लफ़्ज़ प्रेम के,
कोई समझ न पाए।
पत्थर को भी पिघला दे,
प्रेम की ऐसी वाणी हैं।
एक राँझा सा एक हीर सी,
दोनों प्रेम की निशानी हैं।
कोशिश तो बहुतों ने की,
प्रेम को मिटाने की।
लैला को तरपाने की,
मजनू को सताने की।
मिट न सका प्रेम इनसे,
तो दिवारों में चुनवा दिया।
क्या प्रेमी वो दीवाने थे,
जो इसको भी स्वीकार किया।
ये तो सिर्फ़ इन्सान थे,
यहाँ ईश्वर भी हारे बैठे हैं।
प्रेम से आज भी लोग इन्हें,
राधा-कृष्ण बुलाते हैं।
वक्त बदला, सदिया बदली,
प्रेम बदल न पाए।
दो लफ़्ज़ प्रेम के,
कोई समझ न पाए।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर