ममतामयी माँ की आँचल - कविता - विपिन चौबे

मैं अपने छोटे मुख से कैसे करूँ तेरा गुणगान,
माँ तेरी ममता की आगे फीका सा लगता भगवान।
तूने ही तो हाथ पकड़ कर माँ चलना मुझे सिखाया है,
व्यवहारों की परिभाषा को आप ही ने समझाया है॥

बस एक दुआ तुझसे माँगूँ मेरी ग़लती को भुला देना,
जब छत की छाया सर से जाए अपनी आँचल माँ ओढ़ा देना।
तेरी लाड और प्यार माँ याद बहुत अब आती है,
चारदीवारियों के भीतर तेरी याद बहुत ही सताती है॥

माँ तू जन्नत की फूल है 
प्यार करना तेरा उसूल है।
दुनिया की मोहब्बत फ़िज़ूल है,
माँ को नाराज़ करना दुनिया की सबसे बड़ी भूल है।
माँ के क़दमों की मिट्टी जन्नत की धूल है,
माँ की हर दुआ ईश्वर को क़ुबूल है॥

ममतामयी आँचल है जिनकी,
जैसे गौरी और जानकी।
ख़ुशियों की तो यह मोती,
माँ की आँखों में करुणा की ज्योति॥

इस काव्य के माध्यम से माँ तेरा ही गुणगान करूँ।
रोक कर इस लेखनी को तेरे चरणों में प्रणाम करूँ॥

विपिन चौबे - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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