रास्ते मिलन के - कविता - अशोक कुमार कुशवाहा 'पाटल'

कैसे आओगे तुम मिलने के बहाने?
कैसे कहोगे तुम इस दिल के तराने?

तुम बन जाओ एक बाती,
मैं बन जाऊँ एक दीपक।
कोई तो जलाएगा हमको,
प्रकाश करने के बहाने।

तुम बन जाओ चाय की पत्ती,
मैं बन जाऊँ शक्कर के दाने।
कोई तो मिलाएगा हमको
कड़क चाय पीने के बहाने,

तुम बन जाओ सीतल सरिता,
मैं बन जाऊँ अधर आराधन।
कोई तो मिलाएगा हमको,
प्यास मिटाने के बहाने।

तुम बन जाओ सुमन सुहानी,
मैं बन जाऊँ सूत कनारी।
कोई तो पिरोएगा हमको,
सुंदर मनका बनाने के बहाने।

तुम बन जाओ नयन सुहाने,
मैं बन जाऊँ रसातल बादल।
कोई तो मिलाएगा हमको,
आँखों में लगाने के बहाने।
           
तुम बन जाओ माँग सुहानी,
मैं बन जाऊँ सूर्य सुहावन।
कोई तो मिलाएगा हमको,
सुहागन बनने के बहाने।

अशोक कुमार कुशवाहा 'पाटल' - जबलपुर (मध्यप्रदेश)

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