मुरझाई तुलसी - रेखाचित्र - ईशांत त्रिपाठी

आज ऐसा मीतेश को क्या हुआ कि लगातार गीता-सार पचासों बार और बार-बार दोहराए ही जा रहा है? आवाज़ मीतेश की सुरीली तो है पर पाठ की आवृत्ति बढ़ने के साथ आवाज़ में अवरूद्ध करने वाले सिसकियाँ भी बढ़ती जा रही है। गीता-सार का पुनः पुनः पाठ दर्शाता है कि मीतेश के संवेदित हृदय को ज्ञान की शीतलता के अतिरिक्त अभी और किसी सहानुभूति की ढूँढ़ है। उसी समय पिंटू पहुँच जाता है जो मीतेश का हमेशा शुभचिंतक हुआ करता है। व्याकुल हो उठी मीतेश की नेत्र-भंगिमाएँ मानो अधीर हो सब कह देना चाहतीं हैं। पिंटू बैठकर उसकी हर बात सुनता है। और क्षणिक मौन हो जाता है। वृतांत कुछ इस प्रकार से है कि मीतेश अभी नया-नया ही घर से पढ़ाई के ध्येय से परदेश निकला है। वह अनभिज्ञ हैं बहुतायत बाहरी आचार-विचार से, ऊपर से उम्र भी लड़कपन की; बहुत ही धार्मिक होने के साथ जोशिला और बहुकलाविज्ञ होने के कारण थोड़ा गर्विला भी है। किराया का मकान होता है और उस मकान में उसका तीसरा दिन था। मीतेश आदतन भोर और संध्या को स्तुति, पाठ और राम जी का कीर्तन किया करता है। वह अकेला नहीं होता है कभी भी क्योंकि उसका साथ निभाती है तुलसी महारानी। वह घर से कुछ लाना आवश्यक समझा हो या नहीं पर पहली प्रधानता तुलसी का छोटा पौधा अवश्य था। वह उस तुलसी देवी को ईश्वर समरूप बैठाने से अधिक अपनी माँ और मित्र समझता था और लक्ष्य यही था कि तुलसी महारानी उसका साथ निभाएँगी। आधुनिक लोग कुत्ते बिल्लियों में स्वामी भक्ति और आत्मीयता खोजते हैं पर मीतेश एक नया उदाहरण है कोमल वृक्ष से सुख-दुख बाँटने वाला। किराए के नए घर में कहीं जगह नहीं थी कि पूजित तुलसी रखीं जाए ताकि उन्हें धूप भी लगे पर एक स्थान था जिसके थोड़े ही दूर कचरा एकत्र करने की व्यवस्था थी। न चाहते हुए भी मीतेश तुलसी माँ को ठीक कचरे की पहुँच से बचाकर बालकनी में करता है जहाँ धूप प्राप्त हो सके। मीतेश तुलसी में विचारपूर्वक ज़रूरत हिसाब स्नानोपरांत पानी देता है और सुंदर तृप्त मुस्कान के साथ दीया दिखाता है। पर होनी को कौन टाल सकता है? पहले दिन से ही कोई तुलसी में अतिरिक्त जल डालने लगता है। तीसरे दिन की सुबह मीतेश की माँ और मित्र तुलसी मुरझाई हुई मिली और घर मालकिन उसी सुबह थोड़ी देर बाद आकर कड़क लहज़े में कहती है कि बेटा अपना रूम बाहर कहीं और देखलो। यहाँ विद्यार्थी रहते हैं, उनका डिस्टर्ब होता है पूजा पाठ से। विद्यार्थियों की शिकायत आई है। मीतेश शालीनता से माफ़ी माँगता है और आगे से ऐसा नहीं होने की बात कहता है। सब कुछ पिंटू सुनता है धैर्यवान होकर और उसी क्षण "तू लगावे लू जब लिपिस्टिक" फूहड़ गाने की तीव्र आवाज़ उस घर मालकिन के यहाँ से आती है जिस पर उस बिल्डिंग पर रहने वाले तथाकथित बापू के पैसों पर मौज उठाने वाले विद्यार्थी जिनकी पढ़ाई तीस मिनट के पूजा से बाधित हो रही थी वही तेज़ कूकी चीख़ करते हुए गीत के बोल को दोहरा रहे थे। आज का विद्यार्थी और नागरिक नैतिक ज़िम्मेदारियों को कितना सहेजने में कामयाब हो रहा है, इस पर अफ़सोस करता हुआ पिंटू कहता है तुलसी अपवित्रता सहन न कर सकी क्योंकि वह पूजित थी, आदर आवाह्नित थी किसी निश्छल मन से, मुर्झा गईं। मैं तुम्हें मुरझाने नहीं दूँगा पर...। बात को रोकते हुए मीतेश अद्य विकसित समाज पर प्रश्नचिह्न करते हुए दबे धीरे स्वर में पिंटू से पूछता है कितने तुलसी को बचाओगे तुम प्रिय...?

ईशांत त्रिपाठी - मैदानी, रीवा (मध्यप्रदेश)

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