संदेश
हिन्दी, भारतीयों की चेतना है - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
हिन्दी भारत की आत्मा है, हमारी पहचान है, हिन्दी को उपेक्षित कर शिक्षा का सर्वांगीण विकास अधूरा है। हिन्दी को मातृ भाषा का दर्जा मिल…
हिन्दी दिवस - कविता - राजीव कुमार
हिन्दी दिवस हिन्दी सप्ताह हिन्दी पखवाड़ा हिन्दी हिन्दी चिल्लाते हैं। कैसे कहें कुछ इन महाजनो को मजे से कबीर को फाड़-…
हे भारत भाषा - कविता - अशोक योगी "शास्त्री"
सदियों से दासता की बेड़ी पड़ी रही पर तू स्वाभिमान से हमेशा अड़ी रही। उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेजी के आगे तू सीना तानकर …
अपनी हिन्दी - कविता - प्रवीन "पथिक"
जब छोटा था, सीखा हिन्दी, हुआ बड़ा तो छोड़ चला। जिसकी छाया में पला बढ़ा, उसी से निज मुख मोड़ चला। हिन्दी हमारी माता है, …
ये कैसा श्रद्धा भाव - संस्मरण - सुधीर श्रीवास्तव
इस समय पितृ पक्ष चल रहा है। हर ओर तर्पण श्राद्ध की गूँज है। अचानक मेरे मन में एक सत्य घटना घूम गई। रमन (काल्पनिक नाम) ने कुछ समय …
एहसास - कविता - दीपक राही
तेरे इश्क में बदनाम सा हो गया हूँ तेरे अश्कों को अब में पहचान सा गया हूँ। दर्द ए तन्हाई से बहक सा गया हूँ तुम्हारे आने से फि…
हिन्दी से तुम प्यार करो - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
हिंदुस्तान के रहने वालों, हिंदी से तुम प्यार करो। ये पहचान है माँ भारत की, हिंदी का सत्कार करो। हिंदी के विद्वानों ने तो, परच…
हिंदी भाषा - कविता - नूरफातिमा खातून "नूरी"
खुद को हिन्दू, हिन्दी कहलाते हैं, और हिंदी ही बोलने में लजाते हैं। बच्चे मेरे अंग्रेजी माध्यम से पढ़ते हैं अभिभावक अभिमान से कहत…
हिन्दी मेरे देश की आशा - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
हिन्दी मेरे राष्ट्र की भाषा, हिन्दी मेरे देश की आशा। हिन्दी साहित्य उन्नयन हो, यह मेरी है अभिलाषा। हिन्दी के बोल बड़े अनमोल, न…
हिन्दी समाज - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
भाषाएं भारत की समृद्ध शिरोमणि है इनमें हिन्दी, सब संस्कृत की पौत्र पौत्रियां गुण गण सबकी मिलती-जुलती। पालि, प्राकृत, अपभ्रंश क…
हिंदी में सबकुछ रखा है - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
आओ तुम्हें बतलाये आज हिंदी मे क्या रखा है, छोटा अ बड़ा आ, क, ख, ग, घ, डं में क्या रखा है, अज्ञानी से जाने का भाव नया लिख रखा …
हिंदी बने राष्ट्र भाषा - कविता - अंकुर सिंह
हमारा हो निज भाषा पर अधिकार, प्रयोग हिंदी का करें इसका विस्तार। निज भाषा है निज उन्नति का कारक, मिटे निज भाषा से हमारा अंधकार।। …
मेरी प्यारी भाषा हिंदी - कविता - प्रशांत अवस्थी
भारत के मस्तक की बिंदी मेरी प्यारी भाषा हिंदी सरल सरल भावों की भाषा यह है मेरे राष्ट्र की भाषा शब्द शब्द में मीठापन है हिंदी…
हिंदी मेरी शान - कविता - कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप"
मेरी आन मेरा अरमान है हिंदी, विविधता में रहे एकता मेरी असली पहचान है हिंदी, एक राष्ट्र, एक ही भाषा भारत का सम्मान है हिंदी! ज…
सरसिज मुख मुस्कान अधर - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नवप्रीत हृदय मधुरिम शीतल अनुराग प्रिये। कोमल किसलय शुभ गात्र चारु रतिराग प्रिये। स्वप्न लोक आलोक कुमुद कुसम…
परिभाषा सुख की - कविता - सुनीता रानी राठौर
प्रेम स्नेह है अनिवर्चनिय सुख, असीमित और चिरस्थाई सुख। न कोई चुराए न हीं कोई छीने, आनंदविभोर करे मन का सुख। आत्मीयता पाने की …
चिड़कली - राजस्थानी कविता - कपिलदेव आर्य
मोत्यां मैंगी चिङकली, सिध चाली ससुराल, आंगणियो बाथां भरै, ठणकै घर-संसार..! झिरमिर आंसूङा झरै, रोवै मायङ-बाप, के करल्यां इण रित रो…
बलात्कार - कविता - मनोज यादव
दीवारों पर खाक बचे है अभियान के किसी की सिसकती बेटी मिली है सिवान में। किसी जंगली जानवर ने नही नोचा है उसे देह पर निशान पाये गये …
कुल का सम्मान - दोहा - संजय राजभर "समित"
जहाँ नेह बरसात हो, वहाँ समर्पण आन। प्रेम दया सहयोग से, कुल का है सम्मान ।। जहाँ रहे संतोष की, मन में उच्च विचार। रूखी-सूखी जो…
रावण ऐसे न जलता - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
रावण ऐसे न जलता दशहरे के मेलों में किसी एक ने पहचाना होता श्री राम को दस चेहरों ने ।। दम्भ और शक्ति के मद में ईश्वर का अस्तित्…
फ़रेबी इश्क़ - ग़ज़ल - रोहित गुस्ताख़
दिल का काम तमाम किया है धड़कन ने आराम किया है इश्क़ इबादत दीवानों की धोखे ने बदनाम किया है गाँव गली सब सदमे में है रातों रात गु…
भूल जाने वाले - गीत - प्रमोद कुमार "बन्टू"
छोड़ कर साथ जाने वाले याद आ रहे भूल जाने वाले क्या कमी थी मेरे प्यार में, साथ मरने की कसम खाने वाले मैं तुझे ही तो प्यार…
मानक है हिन्दी वतन - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
हिन्दी पखवाड़ा दिवस, चलो मनाऊँ आज। जनभाषा निज देश में , रक्षण निज मोहताज़।।१।। अभिनंदन स्वागत करूँ,हिन्दी दिवस आगाज़। इस स्वतंत…
प्रकृति - कविता - प्रियंका चौधरी परलीका
तुम स्वार्थ में अंधे होकर लूटना चाहते हो प्रकृति को तुम जीतना चाहते हो पृथ्वी तुम बनना चाहते हो विजेता। हे मनुष्य ... तुम भ…
क्यों है कोरोना काल में - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
क्यों है कोरोना काल में चंहु ओर हाहाकार में भूख प्यास से बेहाल है क्यों घर लौटते किसान हैं मायूस दो रोटी बिन क्यों हुए बेहाल…
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