चिड़कली - राजस्थानी कविता - कपिलदेव आर्य

मोत्यां मैंगी चिङकली, सिध चाली ससुराल,
आंगणियो बाथां भरै, ठणकै घर-संसार..!
झिरमिर आंसूङा झरै, रोवै मायङ-बाप,
के करल्यां इण रित रो, म्हारो लेगी सो संसार..!!

हिचक्यां चढ़ छाती लगी, झट बाबल सूं आय,
बाबल रा पग फ़ूलग्या, पण धीर काळजै धार..!
आशिष दियो मोकळो, ख़ूब बढाज्यो मान,
अब थांरै कांधै धरयो, दो घर रो अभिमान..!!

कपिलदेव आर्य - मण्डावा कस्बा, झुंझणूं (राजस्थान)

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