एहसास - कविता - दीपक राही

तेरे इश्क में 
बदनाम सा हो गया हूँ
तेरे अश्कों को अब में 
पहचान सा गया हूँ।
दर्द ए तन्हाई से
बहक सा गया हूँ
तुम्हारे आने से फिर 
महक सा गया हूँ।
बड़ी मुद्दतें हो गई 
तुम्हारे इंतजार को
अब बेपरवाह हो चुका हूँ
तुम्हारे दीदार को।
हासिल ना कर सके
जिसे हम चाह रहे थे
पर खोया भी नहीं 
जिसके खातिर हम रो रहे थे
बहक जाते हैं लोग
अक्सर जज्बातों में
तुम तो मिलते हो
अक्सर हमे ख्वाबों में।
तुम्हारे होने से ही 
मेरा होना है
सब कुछ खो कर भी 
मुझे तुम्हारा होना है
बेहक से जाते हैं आँसू 
तेरे औ राही
यह पत्थर की दुनिया है 
इससे संभालना तुम राही।


दीपक राही - जम्मू कश्मीर

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