हिन्दी समाज - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"

भाषाएं भारत की समृद्ध
शिरोमणि है इनमें हिन्दी, 
सब संस्कृत की पौत्र पौत्रियां
गुण गण सबकी मिलती-जुलती।

पालि, प्राकृत, अपभ्रंश के रूपों में
होकर बहती प्रवाहित कालिन्दी, 
रस छंद काव्य व्याकरण शुद्ध
परिष्कृत देवनागरी की समृद्धि।

रासो रचनाओं में डिंगल 
वीर भाव लेकर करतल निनाद
खुसरो की खड़ी बोली और
भक्ति काल का महाकाव्य।

हिन्दी का गौरव रामचरित और
अखरावट पदमावत, जायसी का कलाम, 
सूर सूरावली, मीरा के पद और
साखी सबद कबीर का पयाम।

रस खान और आलवार सन्त
घनानंद का काव्य प्रेम सुजान, 
रीति काल हिन्दी का विकास
बहुतेरे कलमकारों का योगदान।

श्याम सुंदर महावीर भारतेंदु
हिन्दी के आधुनिक शिल्पकार, 
शिक्षा संस्कार का है विकास
हिन्दी है वाणी का श्रृंगार।

रोती पर हिंदी अपना भाग्य
पर भाषा से अब देख प्यार, 
अंग्रेजी को दो सम्मान लेकिन
अपनी निज भाषा बहिष्कार?

बच्चों को गौरव पता नहीं
शुद्ध हिंदी पर हंसते हैं आज, 
अंग्रेजी को अशुद्ध बोलते
हिन्दी में अपंग, ये हिंदी समाज।

अपनी भाषा में उन्नति ही नहीं
पर भाषा में कैसे हो पूर्ण ज्ञान, 
न अपने शस्त्रों से जीत सके
व्यर्थ ले अपरिचित तीर कमान।

हिन्दी अभिव्यक्ति का गौरव
निज गौरव का अनुभव आनंद, 
हिन्दी भारत का हृदय स्पंदन है
बन संस्कृति की पावन सुगंध।

हर क्राति का आधार है हिन्दी
हिन्दी है राष्ट्र का सम्मान
भारत के भाषायी गौरव प्रमाण
निज भाषा को शत् शत् प्रणाम।।

सूर्य मणि दूबे "सूर्य" - गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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