हिन्दी, भारतीयों की चेतना है - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

हिन्दी भारत की आत्मा है, हमारी पहचान है, हिन्दी को उपेक्षित कर शिक्षा का सर्वांगीण विकास अधूरा है। हिन्दी को मातृ भाषा का दर्जा मिलना चाहिए।

किसी भी व्यक्ति की प्रथम पाठशाला उसका परिवार होता है, और मां को पहली गुरु कहा गया है, क्योंकि हिंदी हमारी मात्र जुबान है।
हिंदी भाषा का स्थान, हम भारतीयों के जीवन में मां और संतान के संबंध जैसा ही होता है। इस पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है, बहुत कुछ कहा जा सकता है।

भाषा मनुष्य की अभिव्यक्ति की प्राणद चेतना का नाम है।
हम भारतीयों की वह चेतना हिंदी है। अर्थात मन के भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जो माध्यम है वह मुख्य तौर पर हिंदी भाषा है।


भाषा मौखिक और लिखित दो रूपों में विद्यमान रहती है। भाषा वह माध्यम है जिससे हम देश की संस्कृति, इतिहास, परंपराएं, संचित ज्ञान, विज्ञान एवं तकनीक तथा अपने महान विरासत को जान पाते हैं।
हिंदी हमारी जुबान है अतः हमें अपने बच्चों को हिंदी की ओर उन्मुख करना चाहिए और सरकार को इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा अवश्य देना चाहिए

सारा जहां यह जानता है कि हिंदी हमारी पहचान है।
संस्कृत से संस्कृति हमारी हिंदी से हिंदुस्तान है।
स्वतंत्रता के सूर्योदय के साथ हिंदी को भारत की बिंदी बनना चाहिए था, लेकिन उस हिंदी के हालात आजादी के 73 वर्ष बाद भी गुलामी के 200 वर्षों से बदतर सिद्ध हो रही है।

जिस हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए हिंदी भाषी बंगाली राजा राममोहन राय, ब्रह्म समाज के नेता केशव चंद्र सेन, सुभाष चंद्र बोस, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आशा के दीप जलाए, वह हिंदी अपने ही घर में बिलख रही है उपेक्षित है।

विश्व में इसकी लोकप्रियता बढ़ी है परंतु हिंदी भाषा अपने ही घर में भटक रही है, अपनी पहचान खोती नजर आ रही है। जबकि शिक्षा में हिंदी को विशेष स्थान देना चाहिए।

शिक्षा शब्द संस्कृत के, शिक्ष,धातु से लिया गया है इसका अर्थ है सीखना सिखाना, अर्थात जिस प्रक्रिया द्वारा अध्ययन और अध्यापन होता है उसे शिक्षा कहते हैं।

शिक्षा को सुलभ बनाने के लिए हिंदी भाषा में सिखाया जाना व शैक्षिक जागरूकता फैलाना जरूरी है। तभी वास्तविक स्वतन्त्रता भी सिद्ध होगी जब शिक्षा मे हिन्दी को यथोचित सम्मान मिलेगा।
जय हिन्द, जय हिन्दी।


सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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