बलात्कार - कविता - मनोज यादव

दीवारों पर खाक बचे है अभियान के
किसी की सिसकती बेटी मिली है सिवान में।
किसी जंगली जानवर ने नही नोचा है उसे
देह पर निशान पाये गये है इंसान के।।

मिली  तो रक्त, टांगो के सहारे जमी को नहला रहे थे
आँखो के नीर उसके चेहरे को धुल रहे थे।
सारा सिवान ही जैसे उसके खिलाफ खड़ा हो गया था
जब इतने घिनौने कार्य चल रहे थे, इंसान के।।

अब नरसिंह भी नही निकलते, किसी खंबे या दिवार से
बंद हो गयी थी, आँखे सभी इंसान  की
अब नही रहे जटायु जिन्दा इस संसार में
इसलिए रावण ले गया, फिर किसी सीता को सिवान में।।

दीवारों पर खाक बचे है अभियान के
किसी की सिसकती बेटी मिली है सिवान में...।

किसी ने कहा उसे तुम दुर्गा हो
किसी ने कहा उसे तुम लक्ष्मी हो।
लेकिन बेवश मिली जो कोई बेटी सिवान में
दीवारों पर खाक बचे रह जाते है अभियान के।।।

मनोज यादव - मजिदहां, समूदपुर, चंदौली (उत्तर प्रदेश)

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