क्यों है कोरोना काल में - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

क्यों है कोरोना काल में 
चंहु ओर हाहाकार में
भूख प्यास से बेहाल है
क्यों घर लौटते किसान हैं
मायूस दो रोटी बिन 
क्यों हुए बेहाल हैं
जीवन के डगर में 
आया करोना काल है
राजतंत्र प्रजातंत्र अर्थतंत्र 
सब हुए बेहाल हैं,
और जीवन में मचा 
सब ओर हाहाकार है

मानव ही मानव में नित 
खो गया विश्वास है 
लड़ता रहा नित मौत से
बिखर गई सब आस है
शास्त्र को शस्त्र बना 
काटता नित हाथ हैं
विज्ञान के ज्ञान से निढाल
हो रहा इंसान हैं,
बह गई सब बस्तियां
बाढ़ के सब गाल में 
बह गए इंसान सारे 
मौत के गाल में,
क्योंकि हैं, करोना काल में 
फंसे वर्चस्व के जाल में ,
कर्मशील क्यों अनजान है 
प्रकृति ही उपहार है 
पीछे तू मुड़ कर देख ले 
प्राण दंड तेरा अंजाम है 
अब देख हाहाकार तू 
प्रकृति से अनजान है 
विज्ञान है नहीं कोई श्राप 
मानव ही बन बैठा अभिशाप 
कोरोना काल ही तेरा अंजाम है।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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