कुल का सम्मान - दोहा - संजय राजभर "समित"

जहाँ नेह बरसात हो, वहाँ समर्पण आन। 
प्रेम दया सहयोग से, कुल का है सम्मान ।। 

जहाँ रहे संतोष की, मन में उच्च विचार। 
रूखी-सूखी जो मिले, सबका हो अधिकार ।।

रिश्ते सभी मिठास हो, हरा -भरा परिवार। 
रहे साथ सुख-दुःख में, दृढ़ हो बंधन तार।। 

घर के आँगन में सदा, गूँजे  निर्भय गान।
प्रेम दया सहयोग से, कुल का है सम्मान ।। 

हो आत्मिक संतुष्टि का, एक सजलमय छाँव। 
जो भी हो झुग्गी महल,  पड़े  न खल के पाँव ।।

बाल गोपाल खेलते, घर के आँगन द्वार।
छोटे बड़े बुज़ुर्ग सब, रहे बाँटते  प्यार।। 

भींगे हों सब स्नेह में, अनुशासन के तान। 
प्रेम दया सहयोग से, कुल का है सम्मान ।। 

धर्म-अर्थ 'औ' काम से, खुले मोक्ष का द्वार। 
जप तप के हों तेज में, जीवन के सब सार।।

मातु पिता ईश्वर गुरू, घर में सबका वास। 
असमंजस की दशा में, सब में हो विश्वास।। 

यश अपयश निर्भीत हो, रहे कर्म का ध्यान। 
प्रेम दया सहयोग से, कुल का है सम्मान ।। 

संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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