हिंदी में सबकुछ रखा है - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

आओ तुम्हें बतलाये 
आज हिंदी मे क्या रखा है,
छोटा अ बड़ा आ, क, ख,
ग, घ, डं में क्या रखा है,
अज्ञानी से जाने का 
भाव नया लिख रखा है।
शब्द-अर्थ के अलंकरण से 
रस भाव नया निधि रखा है,
पग पग बढ़ते कदम भाव 
जो विचार नया लिख रखा है।
क, ख, ग, घ ककहरा मे 
विज्ञान नया नित रखा है,
स्वर के सब आखर से ही 
वीणा का वंदन होता है।
जन-जन की भाषा से 
विचार नया नित होता है,
तुम कहते हो हिंदी में 
अब क्या रखा है?
सूर तुलसी मीरा के पद 
अनुभाव नया नित रखा है,
हिंदी की बिंदी तब चमकी 
जन अनुभाव नया लिख रखा है,
आओ सीखें सब हिंदी को 
हिंदी में सब कुछ रखा है।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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