संदेश
इंसानियत होती है - कविता - प्रिया पाण्डेय
इंसानियत होती है अगर तो आज, मात्र धर्म के नाम पर लड़ाई क्यों होती, कट रहे है ना जाने कितने लोग, मंदिर-मस्जिद के नाम पर, इंसा…
मसीहा - लघुकथा - सुधीर श्रीवास्तव
कोरोना क्या आया सरिता के लिए काल सा आ गया। शुरुआत में तो महीनों उसके वर्तमान शहर में कोई मरीज नहीं मिला। लेकिन फिर कोरोना ने उसके श…
गणेशवन्दना - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
चरण कमल श्रद्धा नमन, करूँ गजानन आज। उमातनय परमेश कुरु, स्वस्ति लोक गणराज।।१।। परशु पाणि!पूजन करुँ, लम्बोदर विघ्नेश। गजमुख वर…
ये ज़िंदगी - कविता - मधुस्मिता सेनापति
कभी खुशी तो कभी गम है जिंदगी कभी धूप तो कभी छांव है ये जिंदगी ।। जज्बातों की बारीकियों से कभी टूटती बिखरती है ये ज़िंदगी ।। किस…
ओ मेरी वसुंधरा - गीत - महेश "अनजाना"
सुन जरा! वसुंधरा ! ओ मेरी वसुंधरा ! लहर लहर लहराए, तेरा आंचल हरा हरा। वादियों ने तेरा श्रृंगार किया है। पेड़ों के साए ने प्यार द…
खामोशियों की आवाज - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
सच तो यह है कि खामोशियां भी बोलती हैं, बस उनकी आवाज सुनने वाले कान होने चाहिए। खामोशियों की आवाज कानों के बजाय आत्मा एवं विवेक से स…
हूँ मैं दीवाना - कविता - शेखर कुमार रंजन
हूँ मैं दीवाना और दीवानों के, कदमों में ही है सारा जमाना जब तक साँस हैं तब तक, रहेगी मुझमें ये दिवानगी। हम गाते रहेंगें हमेशा…
दहेज में जलती बेटी - कविता - रवि शंकर साह
आह आह कर रही हूँ मैं घुट घुट कर जी रही हूँ मैं जिस अग्नि को साक्षी मान, सात फेरों से बंधा मेरा जीवन वचनों से बंधकर जीवन पथ, अ…
मिलेगी जीत - कविता - चन्द्र प्रकाश गौतम
है बहुत समय कुछ कर जाने की ख्वाब न देखो मर जाने की जीत के पहले हार तो होती है थोड़ा इंतजार करो, कुछ कर जाने की ये आँखे दिल औ…
जय श्री गणेश - कविता - अतुल पाठक
नया काम कोई भी करता, जय श्री गणेश है नाम वो लेता। सबसे पहले पूजा जाता, वह हैं ऋद्धि सिद्धि के दाता। मोदक उनको बहुत है भाता, ह…
करवटें बदलते ये मौसम - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
तुनकमिजाजी ये मौसम, रूप बदलते सतत अपने बहुरूपिये की तरह हर पल, मनमौजी, बेपरवाह जग, कभी सूर्यातप गर्माहट , बरसाते लू का कहर बन…
चेहरे चेहरे कितने चेहरे - कविता - सुनीता रानी राठौर
देखते हैं हर तरफ अनेकों चेहरे, पढ़ पाते बनावटी किसके चेहरे? दिखते कभी बारह- बजते चेहरे, कभी हसीं वादियों से खिले चेहरे। भलेमान…
दुनिया के रखवाले - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
दुनिया के रखवाले तुझ पर , अर्पण मेरा तन मन धन । तू दाता है परमपिता है , तू ही जीवन और मरन । नजरें कभी न फेरो हे! प्रभु , इतनी…
मैं और मेरा द्वंद - कविता - कपिलदेव आर्य
मैं मार देता हूँ ख़ुदग़र्ज़ी के हज़ारों कीड़े, उखाड़ देता हूँ मक़्क़ारी की ख़रपतवार । मैं कुचल देता हूँ हवशी ज़हरीले कीटाणु , हट…
गरीब की व्यथा - कविता - मधुस्मिता सेनापति
जीते हैं हम गरीबी में सोते हैं हम फुटपाथों पर खाने के लिए, दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती, फिर भी रहते हैं हम टूटे हुए अध- जले …
बेसिक शिक्षा में योग शिक्षा - आलेख - प्रशांत अवस्थी
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में स्वस्थ रहना एक चुनौती बनता जा रहा है। योग स्वास्थ्य लाभ करने की एक विधि अर्थात क्रिया है। कठिन से कठ…
कृष्ण महिमा - कविता - बजरंगी लाल
मटकी फोरत, माखन छोरत, गोपिन करत ठिठोली रे। राधा रानी सो रास रचावत, हिया करत मोरा चोरी रे।। गैया चरावत वंशी बजावत, सबकर दिल हरस…
दो भगण दो गुरु - गीत - संजय राजभर "समित"
गीत लिखें लय प्यारा। भारत देश हमारा।। है सबसे यह न्यारा। भारत देश हमारा।। जीवन पद्…
माँ-पिता - कविता - कपिलदेव आर्य
वो कहते हैं कि मेरे चेहरे पर तेज़ भरपूर है, और मैं कहता हूँ, मेरे माता-पिता का नूर है! उन्हीं की दुआओं से चमकते हैं सितारे मेरे, …
नेमत ए ज़िन्दगी - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
ये ज़िंदगी खुदा की नेमत है। इसे जीे लेने की जरूरत है। ग़म व खुशी के पल में जियें, ये धूप छाँव ही तो दौलत है। जब तक जिये अपना ब…
समय - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
यह बात सत्य है कि जो समय के साथ चलता है वह अपनी जिंदगी में सब कुछ हासिल कर लेता है। भारतीय उक्ति भी यही है कि शुभ काम में देरी ठी…
मधुरिम वेला भोर की - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मधुरिम वेला भोर की, हो सबका कल्याण। सुख वैभव आरोग्यता, सभी दुखों से त्राण।।१।। निर्मल शीतल नव किरण, भरे मनुज उत्साह। मति विवेक …
फूल तुम ग़ज़ब हो - कविता - मधुस्मिता सेनापति
फूल तुम फैलाकर अपनी सुगंध मादकता का सृजन करते हो। रंग बिरंगी दुनिया में सपनों के उपवन तुम सजाते हो। कभी तुम सभी के हृदय की शोभ…
प्यार का मौसम आ गया - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
आओ के प्यार का मौसम आ गया, बारिश-ए-बहार का मौसम आ गया! फ़ज़ा में बिखरी है खुशबू-ए- मिट्टी, गुल-ए-गुलज़ार का मौसम आ गया! नए पत्तों…
तन्हा हो गया हूँ - कविता - शेखर कुमार रंजन
दुख हो या सुख दोनों को ही, अपनों में बाँट लिया करते थे बड़ो का हमेशा इज्जत करते, बदले में प्यार लिया करते थे। मन ना मलिन था तब, …
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