मसीहा - लघुकथा - सुधीर श्रीवास्तव

कोरोना क्या आया सरिता के लिए काल सा आ गया। शुरुआत में तो महीनों उसके वर्तमान शहर में कोई मरीज नहीं मिला। लेकिन फिर कोरोना ने उसके शहर में अचानक ही जबरदस्त हमला सा बोल दिया हो। पहले दिन ही 20 लोग पाजिटिव पाये गये।

सरकार ने शर्तों के साथ बैंकों को खोलने का निर्देश दे दिया। कम स्टाफ की कमी के कारण लंबी छुट्टी मिलने का तो सवाल ही नहीं था। अब उसे सबसे अधिक अपनी बेटी की चिंता होने लगी। आखिर इस हालत में बेटी को कहाँ छोड़ती। हालांकि बैंक से उसका कमरा बहुत दूर नहीं था। लेकिन सवाल तो खुद के साथ बेटी को भी इस संकट से बचाने का था।मायके या ससुराल से रेल बह बंद होने और सम्पूर्ण लाकडाउन की वजह से किसी को बुलाया भी नहीं जा सकता। अभी उसे यहाँ अधिक समय भी नहीं हुआ था। इसलिए सम्पर्क भी न के बराबर था। उसके पति विदेश में थे।

आज चौथे शनिवार की छुट्टी के कारण आज वह घर में ही थी।वह अपनी समस्या कहे भी तो किससे? जितना सोचती उतना ही उलझती जाती।
तभी दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी, उसने दरवाजा खोला तो सामने खड़े नौजवान से पूछा-जी कहिए!

मैं अपनी माँ के साथ यहीं आपके सामने रहता हूँ।पता नहीं क्यों माँ को लगा कि आप कुछ चिंतित होंगी और हाँ अगर आप कोरोना से गीता की सुरक्षा के कारण चिंतित हैं तो आप चिंता छोड़ दीजिए। मुझे नहीं पता लेकिन मांँ सब जानती है।इसलिए आप माँ से एक जरूर मिल लें।

वैसे माँ का आपके लिए संदेश यही है कि आप चाहें तो जब कोरोना का संकट है तब तक आप गीता को हमारे पास छोड़ दें आप उससे दूर भी नहीं रहेंगी और उसे माँ दूरी का अहसास भी कम से कम होगा। साथ में उसकी सुरक्षा भी।भगवान न करे बैंक से वापस आकर कहीं आप गीता के संपर्क में बिना नहाये, कपड़े बदले संपर्क में आ गईं और अंजाने ही सही बैंक में किसी पाजिटिव व्यक्ति से आप मिल गई हों तो आप के साथ साथ गीता के लिए भी खतरा ही है।दूसरा आप कुछ दिन हमारे साथ ही आकर रहें, इससे आप गीता की तरफ से निश्चिंत भी हो सकेंगी।

फैसला आपको करना है मगर माँ कह रही थी अगर आप न मानी तो वो खुद आपके पास आयेंगी।

नौजवान वापस जाने की बात कहते हुए मुड़ा ही था कि सरिता ने उससे कहा- भैया! माँ को बोलना उनकी बेटी उनकी पोती के साथ थोड़ी देर में पहुँच जायेगी।

मेरी बहुत बड़ी समस्या का हल माँ ने चुटकियों मसीहा बनकर हल कर दिया। ये मेरा और गीता का सौभाग्य है कि इस अन्जाने शहर में हम अकेले नहीं हैं।उसकी आवाज़ भर्रा गई और वह अपने नये नवेले भाई को जाते हुए देखती रही।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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