हूँ मैं दीवाना - कविता - शेखर कुमार रंजन

हूँ मैं दीवाना और दीवानों के, 
कदमों में ही है सारा जमाना
जब तक साँस हैं तब तक, 
रहेगी मुझमें ये दिवानगी।

हम गाते रहेंगें हमेशा ही, 
अपने दिलों का तराना
मुझसे ना रूठना क्योंकि,
आता नहीं है मुझे मनाना।

हम अपने ही धुन में जिंदगी का,
गीत धीरे-धीरे गुनगुनाते चलेंगे
हम नई ऊर्जा और उमंग के साथ, 
अपनी कहानी स्वयं सुनाते रहेंगे।

मेरे हर कदम पर तूफान आती है,
छींक दू तो बिजलियाँ कड़कती है
मुझे हरा दो फर्क नहीं पड़ता है,
मैंने जीत बेचकर कई दफा हार खरीदा है

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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