ओ मेरी वसुंधरा - गीत - महेश "अनजाना"

सुन जरा! वसुंधरा ! ओ मेरी वसुंधरा !
लहर लहर लहराए, तेरा आंचल हरा हरा।

वादियों ने तेरा श्रृंगार किया है।
पेड़ों के साए ने प्यार दिया है।
नदियों की कोख से कल कल।
झरनों ने भी, सुर लिए बदल।
सुन जरा ! वसुंधरा! ओ मेरी वसुंधरा!

बादलों ने की है, बारिश की बूंदें।
पक्षियों के मीठे कलरव भी गूंजें।
फूलों पे भंवरे भी मचलने लगे हैं।
चल पड़े हैं आशिक आंख मूंदे।
सुन जरा! वसुंधरा! ओ मेरी वसुंधरा।

धीरे धीरे चलती  हुई यही हवाएं।
कैसे जीयेंगे हम गीत यही सुनाएं।
थक जाएं राहों में जब चलते हुए,
हरियाली चादर ओढ़ के सो जाएं।
सुन जरा! वसुंधरा! ओ मेरी वसुंधरा।

महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos