संदेश
छवि (भाग १०) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(१०) छवि देखता रहता मानव, मायावी संसार की। चर्म-चक्षु दिखलाता रहता, चीज़ें विविध प्रकार की।। ज्ञान-चक्षु यदि खोले मानव, दिख जाता कुछ और…
बस आग होनी चाहिए - कविता - विनय विश्वा
बिन हवा के लहरें नहीं उठती बिन चिता के देह बिलीन न होती होती है बस एक आग चाहे वो आग पानी में हो या शरीर में। बस आग होनी चाहिए चाहे दु…
पर्यावरण और मानव - घनाक्षरी छंद - अशोक शर्मा
धरा का शृंगार देता, चारो ओर पाया जाता, इसकी आग़ोश में ही, दुनिया ये रहती। धूप छाँव जल नमीं, वायु वृक्ष और ज़मीं, जीव सहभागिता को, आवरन क…
शब्द - कविता - संजय राजभर "समित"
मैं शब्द हूँ, दर्शन, ज्ञान, विज्ञान, योग का संचयन और व्यक्त करने का माध्यम हूँ। जहाँ-जहाँ जिस समूह ने जिस-जिस रूप में रेखांकित किया, …
स्त्री चिंतन - कविता - डॉ. मोहन लाल अरोड़ा
स्त्री का अस्तित्व है महान, माँ बनना भी है सम्मान, सब जगत पर है अहसान। कब हटेंगे यह इश्तहार बड़े अस्पतालों से, यहाँ लिंग परीक्षण नहीं …
नाचूँ बन मैं मधुबाला - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ओ दीवाने प्यार ने तेरे, पागल मुझको कर डाला। ओ मस्ताने प्यार ने तेरे, पागल मुझको कर डाला। प्यार से मारी दिल पे गोली, घायल मुझको कर डाला…
छवि (भाग ९) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(९) कर्मभूमि है धरती सारी, कर्ता मनुज महान है। प्रत्येक मनुज के उर तल में, शक्ति और शुचि ज्ञान है।। कर्त्यव्यों के निर्वाह हेतु, शैली …
नज़रिया - कविता - कर्मवीर सिरोवा
बदल दिया नज़रिया इंसानों ने सोचने का, सही और ग़लत को ना पाए समझ, जब सामने थी अपने मंज़िल, तो भूल चुका था मंज़िल पाने का रास्ता, कुछ ना समझ…
यहाँ पर कौन आया है - ग़ज़ल - प्रशान्त "अरहत"
अरकान: मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन तक़ती: 1222 1222 1222 1222 खुली खिड़की हिला पर्दा यहाँ पर कौन आया है। मुझे लगता बहारों ने वही फिर…
नीयत - कविता - सुनील धाकड़
नीयत का तू खाली झोला जग में घूमे लटकाए, जैसी करनी वैसी भरनी का फल तुझे मिल जाए। तन को हराम बनाकर, सूझा कमाने का उपाय, ब्लैकमेल की तकनी…
मैं लेखिका हूँ - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
जब एहसासों का समंदर उमड़ा हो, जब जज़्बात करवट लेने लगते हैं। जब भावनाओं का सामंजस्य बढ़-चढ़कर, अपना आकार लेने लगते हैं।। जब कोई अपनी स…
एक मुलाक़ात ख़ुद से - कविता - रतन कुमार अगरवाला
औरों से तो सब मिलते हैं, ख़ुद से न होती मुलाक़ात। आज ख़ुद को ख़ुद से मिलाया, यह भी हुई नई एक बात। औरों का साथ ढूँढता हर कोई, ख़ुद से क्यूँ …
दुनिया - कविता - बृज उमराव
सूनी धरती सूना अम्बर, सूना यह जग सारा। आओ मिलकर दीप जलाएँ, दूर करें अंधियारा।। जग की रीति है बड़ी पुरानी, तेरी मेरी भिन्न कहानी। सब मि…
प्रेमांजली - कविता - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
मेरे मन का कलश रिक्त, तुम मधुर सुधा से भरी हुई। बस यही एक आशा मेरी, तुम मेरी रिक्तता को भर दो। मैं प्रेम का प्यासा सागर हूँ, तुम मधुर …
साजन विरह नैन मैं भी बरसूँ - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
इन बारिस की बूँदों में भिगूँ, तन मन प्रीति हृदय गुलज़ार बनूँ। पलकों में छिपा मृगनैन नशा प्रिय, मुस्कान चपल अधर इज़हार करूँ। दूज चन्…
माँ की परिभाषा - कविता - समय सिंह जौल
वह पढी लिखी नहीं, लेकिन ज़िंदगी को पढा है। गिनती नहीं सीखी लेकिन, मेरी ग़लतियों को गिना है।। दी इतनी शक्ति हर जिव्हा बोले, देश प्रेम की …
उदास दिल - कविता - ऋचा तिवारी
ना जाने क्यूँ आज कल, ये दिल बहुत उदास है। कहने को तो सब है, पर एक सुकून की तलाश है। वक़्त की बेड़ियों ने कुछ ऐसे जकड़ी है ज़िंदगी। कि ख़ु…
सोचेंगे शाम को - ग़ज़ल - मनजीत भोला
अरकान : मफ़ऊलु फाइलुन मफ़ऊलु फाइलुन तक़ती : 221 212 221 212 दालान ही नहीं हम उनके बाम को। नज़रों के सामने रखते हैं जाम को।। ज़िक्रा न छेड़…
ज़िंदगी - कविता - डॉ. ललिता यादव
ऐ ज़िंदगी तूने मुझे रुसवा करना छोड़ दिया, क्योंकि मैंने तेरे रूखेपन से मुँह मोड़ लिया। लोगों के बदलते रंग को देखकर हैरान नहीं हूँ, सब इस …
उम्मीद अभी बाक़ी है - कविता - प्रभात पांडे
अभी मुझे जीवन में, कुछ करना काम बाक़ी है, अपने आलोचकों को, देना जवाब बाक़ी है। अभी मैं अन्जान हूँ, ज़माने की नज़र में, नाम अपना भी नग़मानिग…
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