माँ की परिभाषा - कविता - समय सिंह जौल

वह पढी लिखी नहीं,
लेकिन ज़िंदगी को पढा है।
गिनती नहीं सीखी लेकिन,
मेरी ग़लतियों को गिना है।।
दी इतनी शक्ति हर जिव्हा बोले,
देश प्रेम की भाषा है।
बस यही माँ की परिभाषा है।।

प्रथम गुरु है फिर भी,
नहीं कोई ग़ुरूर।
माँ की ममता आँचल में
मिलता स्वर्ग ज़रूर।।
तेरे आशीष खुली किताब,
जन्नत का अहसास सा है,
बस यही माँ की परिभाषा है।।

मेहनत से लिख दी जिसने,
मेरी हर तक़दीर।
दुनिया में ख़ुशक़िस्मत 
वो सबसे बड़ा अमीर।।
कामयाबी मिले सबको,
हर साँस की यह अभिलाषा है।
बस यही माँ की परिभाषा है।।

माँ वह वैध है जो,
चेहरे से दर्द पढ़ लेती है।
दुनिया की हर मुश्किल को,
अपने ऊपर सह लेती है।।
माँ तू वह ख़त है, जिसको
पढ़ने को तरसता फ़रिश्ता है।
बस यही माँ की परिभाषा है।।

माँ धरा पर जीवन,
लिखने वाली क़लम है।
माँ की ममता करुणा,
दुनिया का बड़ा धरम है।।
'समय' हर दुख दर्द में,
दिलाती दिलासा है।
बस यही माँ की परिभाषा है।।

समय सिंह जौल - दिल्ली

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos