प्रेमांजली - कविता - नृपेंद्र शर्मा "सागर"

मेरे मन का कलश रिक्त,
तुम मधुर सुधा से भरी हुई।
बस यही एक आशा मेरी,
तुम मेरी रिक्तता को भर दो।

मैं प्रेम का प्यासा सागर हूँ,
तुम मधुर धार प्रेमांजली की।
मुझे अपनी एक लहर देकर,
मेरे मन की शान्त तपन कर दो।

मैं भी मँझधार में भटका हूँ,
मुझे मार्ग प्रेम का दिखला दो।
मुझको भी किनारा मिल जाए,
मुझपर बस ये कृपा कर दो।।

नृपेंद्र शर्मा "सागर" - मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos