सोचेंगे शाम को - ग़ज़ल - मनजीत भोला

अरकान : मफ़ऊलु फाइलुन मफ़ऊलु फाइलुन
तक़ती : 221 212 221 212

दालान ही नहीं हम उनके बाम को।
नज़रों के सामने रखते हैं जाम को।।

ज़िक्रा न छेड़िए आलम तमाम का,
आए हैं छोड़कर आलम तमाम को।

हम जान से गए औ' जान भी गई,
क्या नाम दीजिए क़ब्रों के नाम को।

तारे ने टूटकर आकाश से कहा,
क्यों दूर कर दिया अपने ग़ुलाम को।

तुमको अज़ीज़ है आयत कुरान की,
हमको है चूमना उसके पयाम को।

गुज़रे है साक़िया मस्ती में दोपहर,
होनी है शाम भी सोचेंगे शाम को।

मनजीत भोला - कुरुक्षेत्र (हरियाणा)

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