दुनिया - कविता - बृज उमराव

सूनी धरती सूना अम्बर,
सूना यह जग सारा।
आओ मिलकर दीप जलाएँ,
दूर करें अंधियारा।।

जग की रीति है बड़ी पुरानी,
तेरी मेरी भिन्न कहानी।
सब मिलकर कुछ मोती चुनकर,
पूर्ण करें इक लणी सुहानी।।

यह जग एक अगम दरिया,
दूर तलक कुछ नज़र न आए।
सेमल से फूलों सा जीवन,
बिना महक खग को ललचाए।।

जीवन का मंज़र है ऐसा,
जूझ रहे हालातों से।
अपनी ढपली राग है अपना,
भिड़ते हैं जज़्बातों से।

बहुत बड़ा यह मायाजाल है,
फँसा यहाँ हर प्राणी है।
तीन और तेरह का चक्कर,
भरता जीवन भर पानी है।।

प्रीति की रीति निभा निभा कर,
जीवन बीता जाता है।
अन्दर से वीरान ज़िंदगी,
सुन्दर सतह दिखाता है।।

बड़ी बेरहम निर्मम दुनिया,
करुणा दया का लोप हुआ।
बहुतेरी घटनाएँ ऐसी
बिना तथ्य आरोप हुआ।।

लोभ और लालच को छोड़े,
सुन्दर सा आशियाँ बनाएँ।
महक उठे रिश्तों की बग़िया,
प्रीति प्यार से इसे सजाएँ।।

ईर्ष्या द्वेष का नाम न हो,
रोशन होता हो हर घर द्वार।
व्याधि व्यथा से पूर्ण सुरक्षित,
सारा जग होवे ख़ुशहाल।।

बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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