एक मुलाक़ात ख़ुद से - कविता - रतन कुमार अगरवाला

औरों से तो सब मिलते हैं,
ख़ुद से न होती मुलाक़ात।
आज ख़ुद को ख़ुद से मिलाया,
यह भी हुई नई एक बात।

औरों का साथ ढूँढता हर कोई,
ख़ुद से क्यूँ यों बेगाना है।
ख़ुद से ख़ुद को मिला कर आज,
थोड़ा सा ख़ुद को जाना है।

पहली बार पता चला है,
मुझमें भी है कुछ बात।
बड़ा सकून दिला रही है,
ख़ुद से ख़ुद की मुलाक़ात।

बुराईयाँ भरी पड़ी है,
हो रहा ख़ुद पर परिहास।
झाँका जब अपने अंदर,
कमियों का हुआ अहसास।

औरो की निंदा छोड़,
ख़ुद का मैने किया आकलन।
परनिंदा को किया दरकिनार,
अच्छाइयों का किया आचरण। 

ज़िंदगी में आगे बढ़ना चाहूँ मैं,
ख़ुद को ढालूँ इस प्रकार।
लोग करें मेरा अनुसरण,
इस जीवन में बारम्बार।

अच्छी रही यह मुलाक़ात,
ख़ुद ने ख़ुद को लिया पहचान।
लोग भी अच्छे लगने लगे,
राह हो गई बड़ी ही आसान।

जीवन में पहली बार,
ख़ुद से की एक मुलाक़ात।
पहली बार ही सही पर,
ख़ुद ने ख़ुद से की फ़रियाद।

रतन कुमार अगरवाला - गुवाहाटी (असम)

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