संदेश
पुलवामा के अमर शहीद - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
पुलवामा के अमर शहीदों, तुमको भुला नहीं सकते। त्याग और बलिदान तुम्हारा, उसको भुला नहीं सकते। वैलेंटाइन डे के दिन जब, मातृभूमि हित प्राण…
पुलवामा हमला - कविता - नीरज सिंह कर्दम
कभी नहीं संघर्ष से इतिहास हमारा हारा। शहीद हुए जो वीर जवाँ, उन्हें नमन हमारा। पुलवामा हमले में सड़कें वहाँ की लहुलुहान हुई। किसी ने खो…
अभिलाषा तिरंगे की - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
कुछ वतन नाम के कर जाओ की देश तिरंगा शान रहे, तुम भी कुछ कर जाओं एेसा की देश तिरंगा मान रहे। एक तिरंगा अभिलाषा है केसरिया श्वेत हरे …
नमन अमर सपूत - कविता - रमाकांत सोनी
हिमालय सा हौसला है, सागर सी गहराई है। क्रांति काल में वीरों ने, प्राणों की भेंट चढ़ाई है।। हँसते-हँसते झूल गए, वो क्रांतिवीर कमाल हु…
पुलवामा के अमर शहीद - कविता - आर. सी. यादव
धरा शांत है, व्योम मौन है नापाक कायरों की हरकत से। अमन-चैन को छीन रहा है नीच-क्रूर-ओछी फ़ितरत से।। धुमिल हुई रोशनी चंद्र की सूर्य किरण …
भुला नहीं जाता वो दिन यार - कविता - प्रहलाद मंडल
हँसते मुस्कुराते उस बस की आवाज़ें, किसी की नज़रों में गढ़ गए थें। अनजाने में आकर दुश्मनों नें, पीठ पीछे वार किए थे। शांति फैली हुई थी यह…
मिले प्रतिष्ठा तब वतन - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
समझो ये चेतावनी, करे जो देश विरोध। भूल प्रतिष्ठा वतन की, बने प्रगति अवरोध।।१।। शौर्य वीर सीमा वतन, उद्यत नित बलिदान। तजो स्वार्थ द…
प्रभात दर्शन - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
नया सवेरा उठकर देखो कैसा प्रभात वो होता है, रोज़ नई उम्मीदों मे वो प्रभात फिर खिलता है, माना दिन बदला बादल न आए पर युग बदला बादल भी …
कान्हा - गीत - संजय राजभर "समित"
मुरली वाला कान्हा में अब, शरणागत हो जाना है। भव सागर के पार उतर कर, परम शांत हो जाना है। चितचोर है या माखन चोर, कुछ न सम…
अभी कल की बात है - ग़ज़ल - मनजीत भोला
पीते न थे वो हाफ़ अभी कल की बात है, आता नज़र था साफ़ अभी कल की बात है। शामिल सबा में थी यहाँ खुशबू अजान की, कोई न था ख़िलाफ़ अभी कल की बात…
प्रेम - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
प्रेम है एक शब्द छोटा, पर, बृहद इसका भाव है। प्रेम जिसके उर बसा हो, ना उसे कोई अभाव है।। प्रेम ही एक आस है, प्रेम ही एक प्यास है। स…
ओ सुकोमल कविमन - गीत - पारो शैवलिनी
तुमने बहुत से गीत रचे हैं मेरे लिए आज फिर से रचो, कोई गीत नया मेरे लिए, ओ सुकोमल कविमन! रच डालो फिर से गीत नया मेरी कोमल पँखुड़ियों पर…
बुझे बुझे से चेहरे - ग़ज़ल - एल. सी. जैदिया "जैदि"
बुझे बुझे से चेहरे, बुझे हुऐ से ख़्याल है, कुछ न बदला, बदला फ़कत ये साल है। थे जहाँ तअज्जुब है वही पे हम आज है, दरिद्रता, व्याभिचार सबस…
बसंत - हाइकु - रमेश कुमार सोनी
१ माली उठाते बसंत के नखरे भौंरें ठुमके। २ बासंती मेला फल-फूल, रंगों का रेलमपेला। ३ फूल ध्वजा ले मौसम का चितेरा बसंत आते। ४ बागों के…
जय जवान जय किसान - गीत - समुन्द्र सिंह पंवार
भारत माँ के पूत महान, जय हो जवान और किसान। एक देश की रक्षा करता, एक पेट देश का भरता। इनसे ज़िंदा है हिंदुस्तान, जय हो जवान और किसान।। य…
लफ़्ज़ों की जादूगरी - कविता - रमाकांत सोनी
नेह बरसाती मधुर वाणी, अपनापन अनमोल। दुनियाँ बनती रिश्तों में, मुख से निकले कड़वे बोल। अर्श से फ़र्श, ज़मीं से आसमाँ, लफ़्ज़ों की जादूगरी क…
परिवर्तन - कविता - बोधिसत्व कस्तूरिया
मैं पीपल का प्रतिष्ठित पुराना पेड़। प्रतिवर्ष पीत परिधानों को पलटते पलटते प्रियदर्शनी प्रेयसियों को प्रिय हो गया।। परिक्रमा पूर्णकर प्…
साज़िश - कविता - वैभव गिरि
बादलों की दहलीज़ पर पहले कोई आया होगा, बड़े बड़े वादे करके उसने इरादे बेच खाया होगा। हिमाक़त करके भी क्या कर सकता था बादल, गुस्से में गरज …
लिखना - ग़ज़ल - डॉ. अवधेश कुमार अवध
ज़िंदगी ज़िंदादिली को प्यार लिखना, अजनबी को मत कभी हमयार लिखना। अनछुए कोरे कपोलों की परिधि पर, तर्जनी से यूँ नहीं सिंगार लिखना। हैं शरम …
आधुनिक साहित्यकार - व्यंग्य लेख - सुधीर श्रीवास्तव
नमस्कार दोस्तों! हाँ मैं छपासीय संस्कृति का आधुनिक साहित्यकार हूँ। अब ये आप की कमी है कि अभी तक आप पुरातन युग में ही जी रहे हैं। अरे …
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