लफ़्ज़ों की जादूगरी - कविता - रमाकांत सोनी

नेह बरसाती मधुर वाणी,
अपनापन अनमोल।
दुनियाँ बनती रिश्तों में,
मुख से निकले कड़वे बोल।
अर्श से फ़र्श, ज़मीं से आसमाँ,
लफ़्ज़ों की जादूगरी का कमाल।
कोई चढ़ाता चाँद पर बातों में,
कहीं मच जाता है धमाल।
लफ़्ज़ लबों से निकले होते,
बेहद सुंदर और सुरीले होते।
कड़वे मीठे बोल सब अनमोल,
होठों तक आने से पहले तोल।

रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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