भुला नहीं जाता वो दिन यार - कविता - प्रहलाद मंडल

हँसते मुस्कुराते उस बस की आवाज़ें,
किसी की नज़रों में गढ़ गए थें।
अनजाने में आकर दुश्मनों नें,
पीठ पीछे वार किए थे।

शांति फैली हुई थी यहाँ मेरे,
दुश्मनों के यहाँ शोर हो रहे थे।
ये कम दिन वाली फरवरी भी,
आधे में ही ख़त्म लग रहें थे।

भुला नहीं जाता वो दिन यार,
जब हमने तिरंगे से लिपटी हुई
बहुत सारे हीरे खोए थे।

मेरे मिट्टी की हीरे का पता,
यहीं के किसी ने दी होगी।
वरना दुश्मनों की क्या ‌मजाल,
जो भारत के वीरों को छू लेगी।

पीठ पीछे वो वार करके,
ख़ुद को बड़ा सम्राट समझते होंगे।
देश में रहकर जिसने गद्दारी की है,
वो कितने बेशर्म रहे होंगे।

किसी ने पापा, किसी ने बेटा, किसी ने भाई 
तो किसी ने अपने नये सुहाग को खोए थे। 
और हमने तो कई वीर खोए थे।

भुला नहीं जाता वो दिन यार,
जब हमने तिरंगे में लिपटी हुई
बहुत सारे हीरे को खोए थे।

प्रहलाद मंडल - कसवा गोड्डा, गोड्डा (झारखंड)

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