बुझे बुझे से चेहरे, बुझे हुऐ से ख़्याल है,
कुछ न बदला, बदला फ़कत ये साल है।
थे जहाँ तअज्जुब है वही पे हम आज है,
दरिद्रता, व्याभिचार सबसे बड़े सवाल है।
गाँव, ढाणी, शहर सब सड़को पे आया,
बिन मांगे जो मिल रहा उसी पे बवाल है।
हम बड़ा गली संकरी, सोचते सब यहाँ,
बात अंदर की करे, कर्ज़ से डूबे बाल है।
उसकी टोपी इसके सिर, रखते है यहाँ,
दुनिया के मंच पे ये कला बड़ी कमाल है।
भूख से बिलखती जिह्वा सब जाने 'जैदि',
मुफलिसी का हर कंधा ख़ुद से बेहाल है।
एल. सी. जैदिया "जैदि" - बीकानेर (राजस्थान)