प्रभात दर्शन - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

नया सवेरा उठकर देखो 
कैसा प्रभात वो होता है,
रोज़ नई उम्मीदों मे 
वो प्रभात फिर खिलता है,
माना दिन बदला बादल न आए 
पर युग बदला बादल भी छाए,
अब जाग उठो मानस संतानो 
मोह माया निद्रा को त्यागो,
उन प्रभात की किरणों मे 
जीवन का तुम दर्पण देखो,
फिर सोए भाग जगेंगे 
जब प्रभात हम देखेंगे।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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