कान्हा - गीत - संजय राजभर "समित"

मुरली वाला कान्हा में अब,
शरणागत हो जाना है।
भव सागर के पार उतर कर,
परम शांत हो जाना है। 
            
चितचोर है या माखन चोर,
कुछ न समझ में आए।
कभी चिढ़ाये, कभी मनाए,
कभी मुरली धुन बजाए।

आया है शुभ दुर्लभ अवसर,
प्रखर मुखर हो जाना है।
भव सागर के पार उतर कर,
परम शांत हो जाना है। 

गीता का संदेश उचारो,
जीवन सरल सुगम होगा,
अनंत सदियों के फेरे से,
सदा-सदा बे-गम होगा।

आँखें खोलकर इस जगत से,
प्रकृति से परे हो जाना है।
भव सागर के पार उतर कर,
परम शांत हो जाना है। 
            
चीर चुराता रास रचाता,
कभी सुदर्शन ले डटता,
सोलह कलाओं से परिपूर्ण,
मनमोहक छटा लुटाता। 

अनुरागी बनकर नटखट का,
अब विलीन हो जाना है।
भव सागर के पार उतर कर,
परम शांत हो जाना है। 

संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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