साज़िश - कविता - वैभव गिरि

बादलों की दहलीज़ पर
पहले कोई आया होगा,
बड़े बड़े वादे करके उसने
इरादे बेच खाया होगा।
हिमाक़त करके भी
क्या कर सकता था बादल,
गुस्से में गरज कर उस पर
ख़ुद ही आँसू बहाया होगा।

चाँद सितारों से
ये बात देखी नही गई,
तो घुमाने की सिफ़ारिश
हवाओं से किया होगा।
उसके दोबारा मिलने के धोखे में
दुनिया घूमता रहा बादल,
तो उसने जलते सूरज से समझौता कर
बादलों को मिटाया होगा।

वैभव गिरि - विशेश्वरगंज, बहराइच (उत्तर प्रदेश)

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