वैभव गिरि - विशेश्वरगंज, बहराइच (उत्तर प्रदेश)
साज़िश - कविता - वैभव गिरि
गुरुवार, फ़रवरी 11, 2021
बादलों की दहलीज़ पर
पहले कोई आया होगा,
बड़े बड़े वादे करके उसने
इरादे बेच खाया होगा।
हिमाक़त करके भी
क्या कर सकता था बादल,
गुस्से में गरज कर उस पर
ख़ुद ही आँसू बहाया होगा।
चाँद सितारों से
ये बात देखी नही गई,
तो घुमाने की सिफ़ारिश
हवाओं से किया होगा।
उसके दोबारा मिलने के धोखे में
दुनिया घूमता रहा बादल,
तो उसने जलते सूरज से समझौता कर
बादलों को मिटाया होगा।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर