समझो ये चेतावनी, करे जो देश विरोध।
भूल प्रतिष्ठा वतन की, बने प्रगति अवरोध।।१।।
शौर्य वीर सीमा वतन, उद्यत नित बलिदान।
तजो स्वार्थ द्रोही वतन, करो राष्ट्र सम्मान।।२।।
तभी प्रतिष्ठा ख़ुद मिले, यदि प्रतिष्ठित देश।
धन वैभव सुख प्रगति सब, सुखद बने उपवेश।।३।।
संस्कृत संस्कृति हो उभय, मिली प्रतिष्ठा देश।
पृथ्वी ही परिवार है, नित भारत संदेश।।४।।
आन बान शान ए वतन, रक्षा समझो धर्म।
ज्ञान दान परमार्थ जग, त्याग शील सत्कर्म।।५।।
मिले प्रतिष्ठा त्याग से, दान शील सत्कर्म।
रखते मर्यादा वतन, नीति प्रीति सद्धर्म।।६।।
धीर वीर गंभीर जो, प्रतिमानक पुरुषार्थ।
बढ़े प्रतिष्ठा मनुज की, दया क्षमा परमार्थ।।७।।
राष्ट्र भक्ति मन प्रीति से, जीवन हो अभिभूत।
तभी प्रतिष्ठा अवतरण, मानव बने सपूत।।८।।
मातृभूमि भारत सबल, हो विकास चहुँओर।
उषा किरण नवप्रीति का, बने आश नव भोर।।९।।
आशा तृष्णा कोप मद, घातक बुद्धि विवेक।
गिरे प्रतिष्ठा मनुज की, सकल पाप उद्रेक।।१०।।
माँ बहना पत्नी सुता, विविधा नारी शक्ति।
सबला शिक्षित निर्भया, मातृतुल्य हो भक्ति।।११।।
मिले प्रतिष्ठा न्याय को, बने मधुर सम्बन्ध।
सद्विचार निष्पक्ष मन, फैले प्रीति सुगन्ध।।१२।।
मातु पिता गुरु मान से, मिले प्रतिष्ठा लोक।
मिले प्रतिष्ठा तब वतन, मिटे रोग जन शोक।।१३।।
कवि निकुंज निःस्वार्थ मन, लेखन रत अविराम।
अर्पण रचना रस कुसुम, भारत करूँ प्रणाम।।१४।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली