बसंत - हाइकु - रमेश कुमार सोनी

माली उठाते
बसंत के नखरे
भौंरें ठुमके। 

बासंती मेला
फल-फूल, रंगों का 
रेलमपेला।

फूल ध्वजा ले
मौसम का चितेरा
बसंत आते। 

बागों के पेड़
रोज़ नया अंदाज़
बसंत राज।

बासंती जूड़ा 
रंग-बिरंगे फूल 
दिल ले उड़ा। 

आओ श्रीमंत
दिखाऊँ कौन रँग
कहे बसंत। 

फूल-भँवरे
मदहोश श्रृंगारे 
ऋतुराज में।

बसंत गली
भौंरें मचाए शोर
मधु की चोरी।

बसंत आते 
नव पल्लव झाँके 
शर्माते हरे। 

१०
खिले-महके
बसंत लौट जाते
प्यार बाँटते।

११
कोई तो रोके
मेरा बसंत जाए
योगी बनके।

१२
खिले-बौराए
कनक सा बसंत
झरे बौराए।

१३
बसंत बप्पा
जाओ जल्दी लौटना
खिलाने चम्पा।

१४
फूल चढ़ाने
पतझर के क़ब्र
बसंत आते। 

१५
बसंत लाता
सौंदर्य का उत्सव 
रंगों का मेला। 

१६
बासंती 'गिफ्ट'
फूल तोड़ना मना
भौरों को 'लिफ्ट'।

रमेश कुमार सोनी - रायपुर (छत्तीसगढ़)

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