प्रेम - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"

प्रेम है एक शब्द छोटा, 
पर, बृहद इसका भाव है। 
प्रेम जिसके उर बसा हो, 
ना उसे कोई अभाव है।।

प्रेम ही एक आस है,
प्रेम ही एक प्यास है।
सकल धन हैं गौड़,
प्रेम-धन एक ख़ास है।। 

प्रेम ही एक डोर है, 
जिससे बंधे हम हर ओर हैं। 
प्रेम ही एक लहर है, 
उर लेती पल-पल हिलोर है।।

प्रेम एक  सम्बन्ध है,
श्रृष्टि संरक्षक प्रबन्ध है।
प्रेम उर-तट बन्ध है,
पावन पवन सुगन्ध है।। 

प्रेम से पतझड़ है औ, 
प्रेम से मधुमय बसन्त। 
प्रेम ही जग आदि है, 
प्रेम ही जग-जीव अन्त।।

प्रेम के कई रूप हैं,
प्रेम के कई भाव हैं।
प्रेम के कई मर्म हैं,
प्रेम के कई प्रभाव हैं।। 

प्रेम की भाषा कई हैं, 
प्रेम-परिभाषा कई हैं। 
प्रेम पिपासा भी कई हैं, 
प्रेम से अभिलाषा कई हैं।।

प्रेम से आप, हम हैं,
प्रेम से हर खुशी, ग़म हैं।
प्रेम से विश्वास, भ्रम हैं,
प्रेम से आराम, श्रम हैं।। 

प्रेम ही एक जाल है, 
प्रेम अमोल एक माल है। 
प्रेम-परिणाम विशाल है, 
प्रेम, काल न अकाल है।।

प्रेम, ज्ञान, विज्ञान है,
प्रेम तप हर दान है।
प्रेम-धनी, धनवान है,
प्रेम-बली महान है।। 

प्रेम राधा, प्रेम मीरा, 
प्रेम सूर, रखान हैं। 
प्रेम से ही देह अपनी, 
प्रेम ही यह जान है।।

प्रेम ही एक शान है,
प्रेम प्रभ-ुगुंण-गान है।
प्रेम हर सुर, तान है,
प्रेम आरम्भ, अवसान है।।

राम प्रसाद आर्य "रमेश" - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)

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