संदेश
पिता: पहले और बाद - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
हम नादानियों के चलते पिता के रहत उनके जज़्बात नहीं समझते, जब तक समझते हैं तब तक उन्हें खो चुके होते हैं। उनके रहते हम खुद को स्वच्छंद प…
वक़्त का पहरा - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
घड़ी चल रही है पल पल वहीं दिन ढल रहा है पग-पग वहीं, न जाने ये कैसी पहेली जगी अजब ज़िंदगी की पहेली जगी, न जाने कोई कल की गुज़रा कहीं न …
और ये साल गया - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
घिसट-घिसट दिसंबर आया और ये साल गया। अगर मौसम बदला पड़ने लगे तुषार। और फसल-खेत को चढ़ने लगे बुखार।। कोरोना के कारण उत्सव और धमाल गया। ठ…
इंसान तो खो गया - कविता - श्रवण निर्वाण
तन बंटे हैं मन बंटे हैं बंटाधार हो गया, इंसान तो खो गया। रंग बंटे हैं लिबास बंटे हैं मनमुटाव हो गया, इंसान तो खो गया। मौहले बंटे हैं ब…
पौरुष सम नहि मीत जग - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
भाग्य और पुरुषार्थ में, श्रेष्ठ चयन पुरुषार्थ। सुफल सुखद पौरुष सुयश, देश भक्ति परमार्थ।।१।। सुपथ समादर नित जगत, जो जीवन गतिमान। मार…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २९) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२९) बोल पड़े जगपाल, किरण पट खोले अपना। गुज़र गए जयपाल, सँजोकर मन में सपना। आंदोलन की डोर, एन.ई.होरो पकड़े। सक्रिय रह पुरजोर, अलग राज्य ह…
समकालीन कथा - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
इस धरती के ऊपर आसमान की छानी है। पेड़-पौधे अपने में तल्लीन दिखते हैं। अब तो बरगद समकालीन- कथा लिखते हैं।। रसाल दिखते जैसे कि बड़े औघड़…
उत्तर कभी ना जाना - गीत - पारो शैवलिनी
नि:शब्द रात में, सुने हो क्या पृथ्वी का रोना। एकान्त दोपहर में, देखे हो क्या अपने मन का आईना।। प्रश्न किया है, तारों से ये नींद नहीं आ…
चंचल मन - कविता - मिथलेश वर्मा
आगे निकल आया हूँ, इस कदर। रास्ता हुआ धुँधला, ओझल हुआ नगर।। क्या रख लाया था? विचारों की पोटली मे। ज़िन्दगी अब कुटने लगी है, वक़्त की ओख…
बोलिए ना - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
कब तक ख़ामोश रहें बोलिए ना। डर कर आग़ोश रहें बोलिए ना। वक़्त जो आज है, कल ना रहेगा, कब तक पुरजोश रहें बोलिए ना। स्टे होम, सेफ होम …
खुशियाँ लाएगा नया साल - गीत - रमाकांत सोनी
खुशियाँ लाएगा नया साल, खुशियाँ लाएगा नया साल, झूमें नाचें गाएं सारे, अब होंगे खुशहाल, खुशियाँ लाएगा नया साल-२ चमक रहे है चेहरे सार…
ठंड का सिंगार - गीत - सतीश मापतपुरी
ठंड की बहार का सिंगार भी अजीब है । शीत की जवानी का ख़ुमार भी अजीब है । क्या हुआ हवा को जो सर्द में बहक गयी । संदली बदन के पोर पोर सा म…
मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २८) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२८) भारत देश विकास, करे सबकी थी आशा। छाया था उल्लास, बीच घनघोर निराशा। आदिवासी सदान, हुए अंदर से जर्जर। भूमि सुधार विधान, ग्रहण ब…
अह्लड़ युवापन - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सतत जोश अहं चढ़ता यौवन, खो होश समझ मदमत्त पवन, ऊर्जावान नित नवशक्ति सघन, कहाँ मर्यादित रह पाता हैं।। युवा सोच कहाँ ह…
पर्यावरण बचाना होगा - कविता - हरदीप बौद्ध
पर्यावरण पर ध्यान धरो कल की चिंता आज करो। जीवन अपना तुम मानकर जल को ना यूँ बर्बाद करो।। अब वृक्ष लगाना शुरू करो और हरा भरा …
त्याग - कविता - समुन्द्र सिंह पंवार
करना पड़ता है हम सब को त्याग। कभी बड़ो के लिये तो कभी छोटों के लिये होता है त्याग। त्याग में भी खुशी मिलती है जो करता है आत्मा से त्याग।…
किसान है तो हम आज हैं - गीत - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
किसान है, तब तो ये अनाज है, औ अनाज है, तो हम आज हैं। किसान है, तो समाज है, औ समाज है, तो हर काज है।। किसान है, तो मन्दिर में पूजा, …
प्यार की खुशबू - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
आइए बाँटते हैं प्यार की खूशबू, ऊँच नीच, छोटे बड़े जाति, धर्म, सम्प्रदाय को भूल सबसे हिलमिल कर रहें सुख दुःख में सहभागी बने निंदा …
दास्ताँ मेरी - गीत - कवि संत कुमार "सारथि"
तनहाइयाँ कह रही, दास्ताँ मेरी, मैं कर रहा हूँ बयाँ, दास्ताँ मेरी। कहता रहा ज़माना, और कहती रही सदाएं गुज़रे पल याद करूँ तो, आँख डबडबा…
धूमिल छाया - कविता - प्रवीन "पथिक"
धूमिल पड़ गई वो छाया! कभी खुशियाँ थी फैलाती; फूलों-सा थी महकाती; नीरव करके जीवन को, मिट गई कभी थी साया। धूमिल पड़ गई वो छाया! सूना सून…
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