अह्लड़ युवापन - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

सतत जोश अहं  चढ़ता  यौवन,
खो होश  समझ  मदमत्त  पवन,
ऊर्जावान नित नवशक्ति  सघन,
कहाँ   मर्यादित   रह  पाता  हैं।। 

युवा   सोच   कहाँ   होंगे   बूढ़े,
युवा वर्ग   यहाँ  या  युवती मन,
तूफ़ान प्रकृति चंचल  चितवन,
सब  मति विवेक खो जाते  हैं। 

नित नया   मनोरथ  नव उड़ान,
सकल माने मन   जीते  ज़हान,
विश्वास  स्वयं  लाएगा  विहान,
जरा व्यथा समझ  कहँ पाते हैं। 

बस वर्तमान काल उत्थान हृदय,
सीढ़ी आरोहण पद प्रगति उदय,
अनुभूति  कहाँ  वृद्धापन जीवन,
ऐश्वर्य    विलास    इठलाते    हैं।

भूले  परिवर्तन  भविष्य  सकल,
रमे जीवन निज  उत्थान शिखर,
स्वमातु पिता कृत  निर्माण स्वयं,
आगत  वधू  पा   भूल  जाते हैं। 

पतिगेह  चली तज स्वमातु पिता,
पति मातु पिता अब सास श्वसुर,
बदली  व्यवहार   सम्मान   रूप,
मन  अपमान भाव  छा जाते  हैं। 

लखि सास श्वसुर या मातु पिता,
वृद्धापन   लाचारी   भार समझ, 
सामर्थ्यहीन   वृद्ध   होंगे    हम,
यौवन सच  नित  भूल जाते  हैं। 

वृद्धापन  लोक   स्वीकार्य नहीं,
नित यौवन तन  अधिकार नहीं,
मनुज गात्र व धन  यौवन नश्वर,
युवा शक्ति अन्ध  मदमाते   हैं।  

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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