समकालीन कथा - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

इस धरती के ऊपर
आसमान की छानी है।

पेड़-पौधे अपने में
तल्लीन दिखते हैं।
अब तो बरगद समकालीन-
कथा लिखते हैं।।

रसाल दिखते जैसे कि
बड़े औघड़ दानी हैं।

झरने से मीठा-मीठा
संगीत फूटता।
शहरों में बसने वालों
का गाँव छूटता।।

ऐसे दिखते हैं पर्वत
ज्यों ऋषि-मुनि-ज्ञानी हैं।

कल-कल बहती नदी
तय करें दुर्गम रस्ता। 
है बाँध रहा बचपन
जबकि स्कूल का बस्ता।।

सरकारी कर्मी का उठता
दाना-पानी है।

अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)

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