प्यार की खुशबू - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

आइए बाँटते हैं
प्यार की खूशबू,
ऊँच नीच, छोटे बड़े
जाति, धर्म, सम्प्रदाय को भूल
सबसे हिलमिल कर रहें
सुख दुःख में सहभागी बने
निंदा नफरत भूलकर
सुंदर, सरल, निर्मल संसार बनाएँ
जीवन में प्यार की खुशबू फैलाएँ।
कोई नहीं है दुश्मन मेरा
सब अपने हैं भाव ये मेरा,
सब के मन में प्यार जगाएँ
एक नया संसार बनाएँ,
सबके दिल में जग बनाएँ
नहीं पराया कोई यहाँ पर
हम ऐसा सदभाव बनाएँ,
आओ जीवन में हम सब
जन जन में विश्वास जगाएँ
प्यार की खूशबू फैलाएँ
एक नया संसार बनाएँ
सबके जीवन को महकाएँ।


सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)


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