इंसान तो खो गया - कविता - श्रवण निर्वाण

तन बंटे हैं
मन बंटे हैं
बंटाधार हो गया,
इंसान तो खो गया।

रंग बंटे हैं
लिबास बंटे हैं
मनमुटाव हो गया,
इंसान तो खो गया।

मौहले बंटे हैं
बास बंटे हैं
भाईचारा चला गया ,
इंसान तो खो गया।

अंदाज़ बंटे हैं
ख़्याल बंटे हैं
विश्वास तो उठ गया,
इंसान तो खो गया।

सब बंटे हैं
क्यों बंटे हैं
हैरान मैं रह गया,
इंसान तो खो गया।

श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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