बोलिए ना - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"

कब तक ख़ामोश रहें  बोलिए ना।
डर  कर आग़ोश  रहें  बोलिए ना।

वक़्त  जो  आज है, कल ना रहेगा,
कब तक पुरजोश रहें बोलिए ना।

स्टे होम, सेफ होम कहा मान लिए,
ख़बरों से  बेहोश  रहें  बोलिए ना।

हालात  नाज़ुक  मोड़  पे  है आज,
सुधरें या सरफ़रोश रहें बोलिए ना।

क़हर के ख़िलाफ़  जंग  लड़ रहे हैं,
हथियार बिना जोश रहें बोलिए ना।

वादा  ख़िलाफ़  हुक़ूमत  ने  किया,
एहसान फ़रामोश  रहें  बोलिए ना।

'अनजाना' भय लग  रहा है सबको,
फिर भी  मदहोश रहें  बोलिए  ना।

महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos